Mandovi Express

Discover the Flavors of India: An Epic Culinary Journey Aboard the Mandovi Express

Discover the flavors of India on a journey like no other aboard the Mandovi Express. This train ride offers more than just scenic views; it’s a chance to taste authentic Indian cuisine. From spicy curries to sweet treats, every meal reflects India’s rich food culture. This post will explore the best dishes, the vibrant spices, and how this train trip feeds both your mind and your taste buds.

A Unique Journey on Rails

जरा सोचो, तुम ट्रेन पकड़ने निकल पड़े हो वही रोज़ का झंझट, टिकट जेब में, बैग हाथ में, कैमरा लटक रहा है, और दिमाग में भारतीय रेलवे की पुरानी यादें घुमड़ रही हैं। अब सोचो, ट्रेन स्टेशन से छूटी नहीं कि तीस मिनट के अंदर तुम मजे से सीट पर पसरे हो, सामने प्लेट में तरह-तरह के टेस्टी नाश्ते, जिनका स्वाद शायद तुम्हारे सबसे बढ़िया खाने के किस्सों को भी पीछे छोड़ दे। अजीब-सा लगता है, है ना?

मंडोवी एक्सप्रेस में आपका स्वागत है! ये ट्रेन सिर्फ़ सफर का जरिया नहीं ये तो पहियों पर चलता-फिरता फूड कार्निवल है। मडगाँव स्टेशन से जैसे ही ये रवाना होती है, सफर की असली कहानी शुरू हो जाती है कोंकण तट के नज़ारे तो मिलेंगे ही, पर असली कमाल है यहाँ मिलने वाले लज़ीज़ खाने में, जो हर यात्री को दीवाना बना देता है। यूं ही नहीं इसे भारतीय रेलवे की फूड क्वीन कहते!

The Culinary Promise of Mandovi Express

भारतीय रेल… क्या कहें, यार! ये तो ऐसा रंगमंच है जहाँ हर रोज़ कोई नई कहानी चलती रहती है लोगों की, स्वाद की, संस्कृति की, और यादों की भी। लेकिन मानना पड़ेगा, इस्पात की पटरी पर दौड़ती अनगिनत ट्रेनों में मंडोवी एक्सप्रेस की बात ही कुछ और है। लोग इसे “फूड क्वीन” कहके बुलाते हैं, और इसमें झूठ बिल्कुल नहीं। सफर का असली मजा तो इसी में है हर डिब्बे से, खासकर पेंट्री कार से, ऐसी खुशबू आती है कि पुरानी यादें और भूख दोनों एक साथ जाग जाती हैं।

जो भी मंडोवी में सफर कर चुका है, वो यही कहेगा ये ट्रेन खाने-पीने का नाम सुनकर ही दिल जीत लेती है। यहाँ हर व्यंजन एक के बाद एक ऐसे परोसा जाता है जैसे कोई स्वाद का कारवां हो, और हर डिश में उस इलाके की अपनी खासियत छुपी होती है। महाराष्ट्र का पोहा, साउथ इंडियन उपमा, मसालेदार चीज़ चिली टोस्ट, कुरकुरे वेज कटलेट भाई, नाश्ते की इतनी वेराइटी कि कई बार तो होटल वाले भी शरमा जाएं।

सबसे मजेदार बात? यहाँ ताजगी और क्वालिटी में कोई कंजूसी नहीं खाना एकदम फ्रेश, साफ-सुथरा और इतना स्वादिष्ट कि कई बार खुद से सवाल कर बैठो, “बाप रे, ये सच में रेलवे का खाना है?” और जवाब हाँ, है! और क्या लाजवाब है!

The Charm of Konkan Railways

मार्ग की प्राकृतिक सुंदरता
मडगांव से मुंबई तक मंडोवी एक्सप्रेस में बैठना, यार, ये बस खाना-पीना नहीं, एकदम फिल्म चल रही है आँखों के सामने। जैसे ही ट्रेन कोंकण के हरे-भरे रास्तों से गुजरती है, हर विंडो फ्रेम में इंडिया का सबसे खूबसूरत पोस्टकार्ड दिख जाता है। सोचो, आप साफ-सुथरी खिड़की के पास बैठे हैं, हाथ में गरम कॉफी, और सामने कभी झरना, कभी टनल, कभी-कभी अरब सागर भी आँख मारता है।

हर मोड़ पर तो लगता है जैसे ड्रोन से कोई नैचर डॉक्युमेंट्री शूट हो रही हो! कोंकण का नेचर, बस, बिना किसी फिल्टर के। और बारिश? मानसून में तो पूरा इलाका परीलोक बन जाता है। पहाड़ों पर बादल ऐसे लटकते हैं जैसे कंबल डाल दिया हो, नदियाँ उफान पर, और हर पत्ता सीरियसली ऐसा चमकता है कि लगता है जैसे कुदरत ने खुद उसे ब्रश किया हो।

अगर आप उन लोगों में हैं जिन्हें खूबसूरत रास्ते पसंद हैं मंडोवी पर सवारी करो। और अगर आप उन लोगों में हैं जिन्हें अच्छा खाकर, खूबसूरत सफर करना पसंद है बस, समझो लॉटरी लग गई!

मानसून का जादू
बारिश तो शहर में बहुतों को परेशान कर देती है, लेकिन कोंकण रेलवे पर? यहाँ तो बारिश मतलब जादू! बारिश के मौसम में यहाँ अक्सर रेड अलर्ट लग जाता है, जिससे ये सफर एकदम ड्रैमेटिक, और हाँ, थोड़ा रोमांटिक भी हो जाता है।

ट्रेन जब धुंध में लिपटे पहाड़ों और बाढ़ जैसे मैदानों से निकलती है, खिड़की के बाहर असली आर्ट गैलरी सज जाती है। रंग, रिफ्लेक्शन, मूड सब कुछ मिल जाता है। और बाहर बारिश की टिप-टिप, अंदर कोच के चम्मच प्लेट की खनक यहाँ हर आवाज़ में एक अलग सा जादू है।

अब सोचिए, गरम, मक्खनी सैंडविच मिल जाए, या बारिश से भीगे धान के खेत देखते हुए मसालेदार कटलेट ये सफर सिर्फ मंज़िल तक जाने का नहीं, हर मोड़, हर पल का मज़ा है।

इंजीनियरिंग के कमाल
प्रकृति के अलावा, इंसान की इंजीनियरिंग भी यहाँ झलकती है। रूट में कई लंबी सुरंगें हैं हर एक का अपना इतिहास, अपनी मुश्किलें। सबसे खास, करबुदे सुरंग साढ़े छह किलोमीटर लंबी, मतलब इंडिया की सबसे लंबी रेलवे टनल्स में से एक।

जैसे ही ट्रेन सुरंग में घुसती है, पूरा अंधेरा। सिर्फ़ कोच की हल्की रोशनी, और यात्रियों की हलचल। फिर अचानक बाहर, झरनों की गूंज, खाने-पीने वालों की आवाजें ये सारे कॉन्ट्रास्ट ही इस ट्रिप को यादगार बना देते हैं।

सच कहें तो, मंडोवी एक्सप्रेस एक ट्रेन नहीं, पूरी कहानी है हर सीन, हर आवाज़, हर स्वाद अलग, और हर सफर एक नया एडवेंचर!

Boarding from Madgaon The Beginning

मडगांव स्टेशन: एकदम अलग ही दुनिया

मानो आपकी गोवा वाली जर्नी की शुरुआत ही मडगांव जंक्शन से होती है, और भाई, ये स्टेशन सिर्फ़ काम चलाऊ नहीं वेलकमिंग भी है। जो भी चाहिए, सब हाजिर मिलेगा प्रीपेड टैक्सी काउंटर हो या प्लेटफॉर्म्स पर तगड़ा साइनबोर्ड, सब कुछ सेट है। टॉयलेट्स तक को इतना चमका रखा है कि कभी-कभी खुद पर शक हो जाता है, “क्या सच में इंडियन रेलवे है?” खाने-पीने के स्टॉल्स, स्मारिका वाली दुकानें टी-शर्ट से लेकर लोकल हैंडीक्राफ्ट तक, क्या नहीं मिलेगा?

अब इस स्टेशन का असली हीरो एग्जीक्यूटिव लाउंज। सिर्फ़ 60 रुपए में 2 घंटे का मज़ा! AC, फुल क्लीन, और इंतज़ार करते-करते खुद को कहीं एयरपोर्ट के लाउंज में फील करने लगो, तो कोई हैरानी नहीं। ट्रेन पकड़ने से पहले ऐसी जगह मिल जाए तो क्या चाहिए!

प्लेटफॉर्म 1 पर वो जो छोटा सा काजू मिठाई वाला कियोस्क है, बस उसी का तो इंतजार रहता है। गोवा की मिठाइयाँ, कोकम सिरप, और काजू चॉकलेट इन चीज़ों के बिना स्टेशन से निकलना गुनाह है। ये इतना फेमस है कि जरा भी देर की, तो खाली डिब्बे ही मिलेंगे। एकदम रॉकेट की स्पीड में बिकता है सब।

अब अगर आप भी मेरी तरह ट्रेन छूटने से बहुत पहले स्टेशन पर पहुँच जाते हो (बिल्कुल टाइम के पक्के), तो मडगांव में बोरियत नहीं मिलने वाली। नए रिटायरिंग रूम्स और IRCTC वाले डीलक्स डॉर्म्स बस PNR नंबर डालो और बुक कर लो। आराम से लेट जाओ या थोड़ा घूम लो।

और जब आख़िरकार अपने AC 2 टियर कोच में सामान रखकर बैठो, तो मन में वही Excitement क्योंकि यार, आगे जो सफ़र है, वो सिर्फ़ ट्रेन की जर्नी नहीं, एक पूरी कहानी है। वो काजू की मिठाई, वो स्टेशन का माहौल, सब मिलकर यादें गढ़ देते हैं, जिनकी बातें सालों बाद भी दोस्तों की महफिल में निकल ही आती हैं।

Mandovi Express – The Food Queen

मंडोवी एक्सप्रेस में खाना भाई, इस पर कोई डाउट ही नहीं, ये खाने के दीवानों का असली स्वर्ग है! सोचो, सीट से हिलने की भी ज़रूरत नहीं, और सामने हर थोड़ी देर में एक नया स्वाद लेकर कोई आ ही जाता है। कभी नाश्ता, कभी दोपहर का खाना, फिर स्नैक्स, फिर मिठाइयाँ पूरा चलता-फिरता फूड फेस्टिवल है ये ट्रेन।

विकल्पों की बात करें तो मज़ा ही आ जाता है। चीज़ चिली टोस्ट चाहिए? मिल जाएगा। ब्रेड कटलेट, पोहा, उपमा, सैंडविच जो भी सोचो, सब ट्रे पर हाज़िर। फिर लंच में पनीर बटर मसाला, चपाती, चावल इतना कुछ कि मन करे बार-बार ऑर्डर बदलकर देखूँ।

सबसे बड़ी बात यहाँ का खाना ताज़गी से भरा है। बाकी ट्रेनों में जो बासी या बार-बार गर्म किया हुआ मिलता है, उसका कोई नामोनिशान नहीं। यहाँ का खाना तो जैसे अभी-अभी किसी ने पूरे दिल से बनाया हो। हर निवाले में घर की याद, और साथ में कुछ नया आज़माने का मज़ा।

यहाँ खाना ऐसे आता है जैसे समुंदर की लहरें पहले नाश्ता, फिर स्नैक्स, फिर दोपहर का खाना, फिर टी टाइम में सरप्राइज़। सच में, ये तो चलता-फिरता बुफ़े है! कई बार तो लगता है सफर कम, खाने का टूर ज्यादा है।

अब असली धमाका तो नाश्ते में है। ट्रेन स्टार्ट होते ही नाश्ते की ट्रे के ट्रे हर ऑप्शन के साथ आने लगती हैं। पोहा चाहिए? ले लो। कटलेट ट्राय करना है? हाज़िर है। चीज़ सैंडविच चाहिए? बिलकुल! टोस्ट मिस कर दिया? चिंता छोड़ो, वो भी आ जाएगा।

इच्छा है मिक्स-एंड-मैच की? यहाँ पूरी छूट है! कटलेट, सैंडविच, साथ में पोहा जो चाहिए, जैसे चाहिए, वैसे मिलेगा। इंडियन रेलवे में ऐसा फ्रीडम मिलना मतलब जीत गए, बॉस! यही तो इस सफर को मज़ेदार बना देता है।

हर चीज़ गरमागरम, ताज़ा और साफ़-सुथरी मिलती है। पोहा महाराष्ट्रीयन अंदाज़ में, ऊपर से मूंगफली और हरे धनिए का तड़का। कटलेट बाहर से कुरकुरे, अंदर से सॉफ्ट। सैंडविच में मक्खन की मोटी लेयर, ताज़ी फिलिंग क्या बात है!

और कॉफी सिर्फ दस रुपए में गर्मागरम कॉफी, वो भी असली स्वाद वाली। कोई घिसी-पिटी पाउडर वाली नहीं, बल्कि ऐसी कि सफर के लिए मूड बना दे। सच कहूँ, मंडोवी एक्सप्रेस में सफर का असली मज़ा तो खाने में छुपा है!

The Incredible Pantry Experience

मंडोवी एक्सप्रेस में पेंट्री कार वाले तो जैसे पुराने ज़माने की मेहमाननवाज़ी का जादू ले आए हैं! सीधा-सीधा फीडबैक फॉर्म पकड़ाते हैं, कोई ऐप-वैप नहीं, कोई क्यूआर कोड नहीं बस पेन से लिख डालो दिल की बात। ये कोई टाइमपास नहीं है, बल्कि खाने और सर्विस को सच में बेहतर बनाने की ज़िद है। लोग जो भी लिखते हैं “लंच में थोड़ा और वैरायटी हो जाए” या “फल की प्लेट थोड़ी हटके हो” वो सच में मेन्यू में दिखने लगता है। एक भाई ने तो कसम से, इसी खाने के लिए तीन साल से मंडोवी पकड़ रखी है! सोचो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में ऐसा लगाव कहाँ देखने को मिलता है?

यात्रियों की भागीदारी से माहौल ही अलग हो जाता है। खुद को सिर्फ़ टिकट वाला कस्टमर नहीं, बल्कि इस पूरे एक्सपीरियंस का हिस्सा समझने लगते हैं। थोड़ी-सी तारीफ़, थोड़ी-सी सलाह सबकी कदर होती है यहाँ।

अब पैसे की बात करें, तो मंडोवी एक्सप्रेस में जेब कटने का डर भूल जाओ! हर चीज़ की कीमत पहले से साफ-साफ प्रिंटेड है, न कोई छुपा चार्ज, न ऐन वक्त पर सरप्राइज़। चाय-बिस्कुट, वेजी कटलेट, चिकन लॉलीपॉप, या गुलाब जामुन जो लिखा है, वही दाम। नाश्ता साठ रुपए में, धमाकेदार लंच डेढ़ सौ रुपए से कम में, और नॉनवेज के ऑप्शन भी एकदम वाजिब दाम में। बिल? भाई, बिना माँगे ही आपके हाथ में! भारतीय ट्रेनों में ऐसा ट्रांसपेरेंसी का लेवल कम ही मिलता है। लोग तो मज़ाक में कहते हैं यहाँ तो पारदर्शिता का सेलिब्रेशन चल रहा है!

जब खाना शानदार, दाम सही और सर्विस दिल से हो, तो सफर बस सफर नहीं, जश्न बन जाता है।

फीडबैक फॉर्म की बात करें, तो ये कोई औपचारिकता नहीं है। फॉर्म पकड़ो, रेटिंग करो, सजेशन दो, या बस तारीफ़ लिख दो यहाँ सबकी आवाज़ मायने रखती है। और सबसे मजेदार बात? स्टाफ सिर्फ फीडबैक नहीं लेता, फॉलो-अप भी करता है! एक यात्री ने फल की प्लेट सुझाई, अगली बार सफर किया तो वही प्लेट मेन्यू में, और स्टाफ खुद आकर थैंक्यू बोल गया। ऐसी एक्टिव सर्विस कहाँ मिलती है!

सिर्फ खाने-पीने तक बात नहीं है, सफाई, टाइमिंग, स्टाफ का बिहेवियर सब पर खुला रिव्यू। यहाँ यात्री सिर्फ मुसाफिर नहीं, बल्कि इस जर्नी के को-क्रिएटर हैं।

भारतीय रेलवे में ऐसी रचनात्मक, दिल से की गई सर्विस मिल जाए, तो सफर अपने-आप यादगार बन जाता है। मंडोवी एक्सप्रेस यहाँ हर सफर में कुछ नया, थोड़ी सी खुशी और ढेर सारी अपनापन!

Lunchtime Luxury – More Than Just Meals

भव्य भारतीय थाली का अनुभव

यार, सोचो नाश्ते में ही पेट भर जाए और लगे कि अब इससे शानदार कुछ हो ही नहीं सकता, तभी तो दोपहर का खाना राजा-महाराजाओं वाली स्टाइल में हाजिर! ट्रेन की पैंट्री कार सीरियस्ली जादू दिखाती है एक मिनट में साधारण रसोई से पांच सितारा रेस्टोरेंट बन जाती है। गरम-गरम ट्रे की कतार, और ये कोई बोरिंग रेल थाली नहीं, ये तो रेलवे का क्रेज़ी फूड फेस्ट है।

अगर आप वेज हो, तो भाई, मज़ा ही आ जाता है फ्राइड राइस, बटर में नहाया पनीर बटर मसाला, सुपर-सॉफ्ट चपाती, शेज़वान की तीखी चटनी, दही और ऊपर से गुलाब जामुन का मीठा पंच! ये खाना सिर्फ पेट ही नहीं, आत्मा तक तृप्त करता है। हर कौर में घर जैसी फीलिंग, मगर हर बार कुछ नया सा ट्विस्ट।

मांसाहारी लोगों के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई चिकन करी, चिकन लॉलीपॉप, चिकन राइस और कढ़ाई चिकन, सब कुछ मेन्यू में लाइन से हाज़िर। हर चीज़ ताज़ा-ताज़ा, साथ में सलाद-साइड डिश मसाले ऐसे कि मन ललचा जाए, मगर पेट को कोई टेंशन न हो। चलती ट्रेन में भी मज़ा पूरा, बिना किसी समझौते के!

अब प्लेट्स की बात करें, तो भाई, प्रेजेंटेशन देख के ही दिल खुश हो जाए। हर ट्रे अच्छी तरह सील, साफ़-सुथरी, और सजावट ऐसी कि फोटो खींचो और इंस्टा पर डालो! धनिया की टहनी, तले प्याज के टुकड़े, नींबू—बस, खाने से पहले थोड़ा कैमरा ऐंगल सेट कर लो।

इस पूरे एक्सपीरियंस को यादगार बनाता है खाने का अंदाज़ और पैंट्री स्टाफ़ का प्यार भरा टच। मुस्कुराकर ऑर्डर लेना, आपकी पसंद पूछना और अगर एक्स्ट्रा चपाती चाहिए, तो झट से ला देंगे। कम मसाले चाहिए? बोलो, सब मैनेज हो जाएगा।

भोजन की स्वच्छता और परोसने की शैली

अब मान लो, ट्रेन में खाना सुनकर लोग अकसर शक़ करते हैं, पर मंडोवी एक्सप्रेस तो गेम चेंज कर देती है। सीलबंद ट्रे, डिस्पोजेबल प्लेट्स, क्लिंग-रैप में कटलरी ताज़गी और सफाई दोनों में कोई चालाकी नहीं। पैंट्री स्टाफ़ ग्लव्स, एप्रन, टोपियाँ ऐसा लगे जैसे कोई मास्टरशेफ टीम हो।

हर बड़े स्टेशन पर सफाई का पूरा इंतज़ाम। स्टाफ़ बदलता है, टाइमिंग एकदम फिक्स खाना कभी भी बासी नहीं। पैंट्री जितनी छोटी, उतनी तेज़ और चतुर टीम लंच टाइम में तो लगता है कोई किचन रेस चल रही है!

मानसून के मौसम में भी टीम ने सेफ्टी और स्वाद दोनों में कोई समझौता नहीं किया। खाना गरमागरम, पैक्ड और टाइम से सर्व। पर्दे के पीछे जो मेहनत चलती है, उसका नतीजा ये है कि सफर यादगार बन जाता है साफ-सुथरा, दिल से लज़ीज़ और पूरी तरह प्रोफेशनल!

The Cultural Flavors of Konkan on a Plate

कोकम शर्बत की बात ही निराली है ठंडा, मीठा, हल्का सा तीखा, जैसे बचपन की गर्मियों में दादी के हाथ का शर्बत। पहले ऐसा स्वाद सिर्फ़ गोवा के घरों में मिलता था, अब ट्रेन में भी मिल जाता है। उपमा या कंधा भाजी खाओ तो लगे जैसे गोवा के लोकल बाज़ार में घूम रहे हो, छोटे स्टॉल से गरमागरम नाश्ता उठा लिया।

खिड़की के बाहर सफेद बादल, हरे-भरे पेड़, और प्लेट में कोंकणी खाने का जादू ऐसा लगता है जैसे हर व्यंजन कोई राज़ फुसफुसा रहा हो। ये खाना सिर्फ भूख नहीं मिटाता, ये तो किसी पुराने किस्से की तरह दिल में उतर जाता है।

अब लंच के बाद, जब सूरज ढलने लगता है, ट्रेन फिर सरप्राइज देती है ताज़े फलों की प्लेट! अनानास, पपीता, खीरा, केला रंग-बिरंगे, ताजगी से भरे। सच कहें तो, स्वाद ऐसा कि मुस्कान आ जाए चेहरे पर।

शाम होते-होते चाय का टाइम आ जाता है। छोटे कप में गरम चाय, कभी बिस्कुट, कभी मिनी सैंडविच, और अगर दिन अच्छा रहा तो चीज़ चिली टोस्ट या ताज़ा डोसा भी। क्या किस्मत है भाई!

मंडोवी एक्सप्रेस की यही तो असली कहानी है हर खाने के साथ सरप्राइज, हर प्लेट में एक्साइटमेंट। यहाँ खाना सिर्फ़ खाना नहीं, सफर का सबसे मज़ेदार हिस्सा है।

Rainy Day Romance – The Monsoon Effect

रेड अलर्ट बारिश में सफर कौन कहता है बारिश रुकवा देती है?

बारिश में ट्रेन से सफर करना? ये तो जैसे कविता और मशीन का अनोखा संगम है। बारिश की कच्ची खुशबू, लोहे की पटरियों की ठोस आवाज़, और प्लेट में गरम वड़ा या इडली कसम से, ये सब मिलकर किसी फिल्मी गाने का बैकग्राउंड बन जाते हैं।

अब नज़ारों की बात करें तो कोंकण रेलवे का मुकाबला ही कौन कर सकता है? मानसून में तो जैसे हर सुरंग, हर जंगल, हर खेत सब जादू कर देते हैं। करबुडे सुरंग, संगमेश्वर रोड ट्रेन ऐसे भागती है जैसे जंगल में गोता लगा रही हो।

कई बार तो प्लेट की तरफ देखूँ या खिड़की की तरफ, ये तय करना मुश्किल हो जाता है। दोनों का स्वाद अलग, दोनों जरूरी। और यही वो दुविधा है, जो हमेशा याद रहनी चाहिए।

यात्रियों के पास कैमरा-फोन तो होते ही हैं, हर सीन इंस्टा के लिए परफेक्ट! हर नज़ारा पेंटिंग जैसा, और यही वजह है कि ये रास्ता ट्रैवल ब्लॉगर्स और रेलवे के दीवानों के बीच सुपरहिट है। सच में, मानसून में कोंकण रेल एक चलती-फिरती फैंटेसी!

The Final Stretch – Arrival in Mumbai

पनवेल से ठाणे होते हुए सीएसएमटी तक

मंडोवी एक्सप्रेस जब मुंबई की हद में घुसती है ना, तो नज़ारा झट से बदल जाता है। वो जो हरी-भरी पहाड़ियाँ थीं, कब उपनगरीय इमारतों में तब्दील हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता। ऊपर से मानसून की हल्की-सी धुंध अब शहरी भागदौड़ में घुल जाती है। वैसे, मज़ा यहीं खत्म नहीं होता! ट्रेन अपनी क्लास लास्ट मिनट तक दिखाती है यात्रा एकदम स्मूथ, डिब्बे ताजे जैसे, और खाने के ऑप्शन? भाई, खाने के तो जैसे नए-नए मेन्यू निकल आते हैं!

पनवेल, अरे ये तो जैसे नवी मुंबई के लोगों का मेका है! यहाँ उतरने वालों की भीड़, स्टेशन की रौनक, सब कुछ अलग ही लेवल पर होता है। ट्रेन यहाँ थोड़ी देर अटकती है, तो लोग सोचते हैं, चलो आखिरी बार समोसा या चाय मार ही लें। कुछ लोग तो बस खिड़की से बाहर झांकते रहते हैं, बाकी पैसेंजर्स की मंडली देख कर मुस्कुरा उठते हैं।

फिर ट्रेन आगे बढ़ती है, इंडस्ट्रियल इलाकों को पार करते हुए ठाणे में थोड़ी देर ब्रेक, और सीधा आखिर में सीएसएमटी! क्या जगह है, भाई! प्लेटफॉर्म पर पैर रखते ही लगता है, यार, ये सफर सिर्फ़ दूरी तय करने का नहीं था, ये तो एक पूरा नया एक्सपीरियंस था। 12 घंटे, 580 किलोमीटर, और हर मोड़ पर कुछ नया खाने को मिल गया कभी टोस्ट का चटखापन, कभी गुलाब जामुन की मिठास, और खिड़की से बाहर झांकते हुए बारिश की खुशबू।

आखिरी पल आते-आते, एहसास होता है कि मंडोवी एक्सप्रेस सिर्फ गोवा और मुंबई को जोड़ने का कोई आम जरिया नहीं है। ये यादों की, स्वादों की, लोगों की, और किस्सों की रेल है। ऐसा सफर, जिसको आप हर किसी को रिकमेंड करेंगे सिर्फ मंजिल के लिए नहीं, मज़े के लिए भी।

और हाँ, अगर कभी वापसी का टिकट खरीद लिया तो चौंकना मत ये सफर वाकई एडिक्शन जैसा है!

Conclusion

मंडोवी एक्सप्रेस? देखो, ये सिर्फ एक ट्रेन नहीं है ये असली स्वादों की बारात है, कोंकण के दिल में झांकने का पूरा मौका। एकदम सच्ची बात है, जब खाना, सर्विस और दिल के जज़्बात सही मिक्स हो जाएँ, तो भारतीय रेलवे भी धमाल मचा देती है।

मडगाँव की शांति से निकलो, मुंबई की उधम में डूबो, हर स्टेशन, हर प्लेट, हर खिड़की से दिखता नज़ारा… सब मिलकर ऐसी अनोखी सिम्फनी बनाते हैं जो दिन में बस एक बार बजती है और वो है मंडोवी एक्सप्रेस की रफ्तार में। अगर कभी मन में आया है कि ट्रेन का सफर सिर्फ मंज़िल तक पहुँचने के लिए नहीं, बल्कि पेट और दिल दोनों खुश करने के लिए हो, तो भाई, टिकट लेने में देर न करना। ये फूड क्वीन इंतज़ार कर रही है।

खाने के शौकीन हो? नेचर के दीवाने हो? या बस थके-हारे मुसाफिर हो जिन्हें मुस्कुराहट चाहिए? मंडोवी एक्सप्रेस सबके लिए कुछ ना कुछ तो लाती ही है। और हाँ, टोस्ट पर मक्खन, हाथ में गरमागरम चाय ये तो जैसे एक्स्ट्रा तड़का है, बिना मांगे मिलने वाली खुशी।

FAQs

मंडोवी एक्सप्रेस कहाँ से चलती है?

देखो, सीधा सा मामला है मडगांव (Goa का दिल!) से लेकर मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CSMT) तक दौड़ती है ये ट्रेन। पूरा रास्ता कोंकण रेलवे का, मतलब हर मोड़ पर नज़ारे ऐसे कि खिड़की से चिपक जाओगे। कहीं घने जंगल, कहीं पहाड़, तो कभी अचानक कोई छोटा सा गांव। यकीन मानो, बोर होना नामुमकिन है इस रूट पर।

मंडोवी एक्सप्रेस को “फूड क्वीन” क्यों कहा जाता है?

अब इस सवाल पर हंसी आती है क्योंकि जिसने एक बार सफर किया, वही समझ सकता है! पेंट्री कार में जो खाना मिलता है, वो किसी और ट्रेन में ड्रीम जैसा है। पोहा, चीज़ टोस्ट, कटलेट, गोवा वाले स्पेशल फिश-क्रिस्पी लोग खाते-खाते इंस्टा स्टोरी डालते रहते हैं। और मज़े की बात, हर चीज़ ताज़ा और गरम। बाकी ट्रेनों की तरह “सिर्फ़ चाय-बिस्कुट” वाली बोरियत यहां नहीं मिलने वाली, भाई!

मंडोवी एक्सप्रेस में भोजन की लागत कितनी है?

कोई छुपी-छुपाई बात नहीं नाश्ता: 60-100 रुपये, खाना (वेज-नॉनवेज): 120-180 रुपये, स्नैक्स/चाय: 10-50 रुपये। और हां, सब प्राइस मेन्यू में प्रिंटेड, मतलब “भैया, कितना हुआ?” वाली कन्फ्यूजन नहीं। पैसे देकर पेट भर लो, फिर खिड़की की तरफ़ मुँह घुमा लो सीन बन जाएगा।

क्या मैं मंडोवी एक्सप्रेस में ऑनलाइन खाना ऑर्डर कर सकता हूँ?

सीधा बोलूं? असली “Swiggy” वाला स्टाइल नहीं है, लेकिन पेंट्री से ऑर्डर दे सकते हो। या फिर IRCTC के कैटरिंग पार्टनर जैसे RailRestro इनसे प्री-ऑर्डर कर लो, थोड़ी झंझट है पर काम हो जाता है। वैसे, मंडोवी की पेंट्री खुद ही फूड-फैक्ट्री है किसी और ऐप की कमी बिल्कुल महसूस नहीं होती।

मंडोवी एक्सप्रेस में कौन से कोच अच्छे हैं?

AC 2 या 3 टियर सीट मुलायम, ठंडक जबरदस्त, सर्विस भी सही।
स्लीपर बजट में सफर करने वालों के लिए, बस भीड़ का मेले जैसा माहौल मिल सकता है। खाने के दीवाने? सीधा पेंट्री के आस-पास का कोच पकड़ो बार-बार खाने के लिए लंबी वॉक नहीं करनी पड़ेगी!

मंडोवी एक्सप्रेस पर मानसून का अनुभव कैसा है?

ये तो जैसे कोंकण का जादू है मानसून में पूरा इलाका हरा-भरा, झरनों का मेला, बादल पहाड़ों के गले लगाते हुए। खिड़की से बाहर देखो, तो लगेगा जैसे नेचर ने पेंटिंग बना दी। सच बताऊँ, बारिश में सफर का मजा ही अलग है। हाँ, थोड़ी देर हो जाए तो हैरान मत होना बारिश में ट्रैक थोड़े स्लो हो जाते हैं।

मंडोवी एक्सप्रेस को यात्रा में कितना समय लगता है?

लगभग 12 घंटे, यानी दिनभर का सफर मडगांव से मुंबई, 580 किमी की दूरी। टाइमिंग का अपडेट चाहिए तो यहाँ क्लिक करो कहीं स्टेशन पर ओवरस्मार्ट बनने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

क्या मंडोवी एक्सप्रेस में साफ-सफाई और स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है?

काफी इम्प्रेसिव डिस्पोजेबल प्लेट्स, स्टाफ ने ग्लव्स पहने होते हैं, और साफ-सफाई पर पूरा ध्यान। सीट्स भी ज्यादातर टाइम क्लीन रहती हैं। अगर आप OCD वाले हो, तो भी मंडोवी आपको निराश नहीं करेगी!

मडगांव स्टेशन की क्या खासियत है?

काजू मिठाई और कोकम सिरप गोवा आए और ये न खाया, तो समझो कुछ मिस कर दिया। AC एग्जीक्यूटिव लाउंज 60 रुपये में 2 घंटा AC में बैठो, चिल मारो, मोबाइल चार्ज करो। वेटिंग रूम, टॉयलेट बिल्कुल साफ, मतलब ‘Indian Railways’ का नाम सुनते ही जो डर लगता है, वो यहाँ नहीं मिलेगा।

मंडोवी एक्सप्रेस टिकट कैसे बुक करें?

IRCTC वेबसाइट या ऐप सबसे नो-नॉनसेंस तरीका। टत्काल अगर प्लानिंग लेट हो गई, तो एक दिन पहले ट्राय करो, सीट मिल भी सकती है, नहीं भी। प्रीमियम पिक सीजन में चलते हैं, जल्दी बुक कर लो वरना “Waiting List” हाथ लगेगी!

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *