How to Leverage Ladies, Senior Citizen, and Divyaang Quotas in Indian Railways
भारतीय रेलवे में महिला, वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांग कोटे का उपयोग कैसे करें, इसके बारे में एक महत्वपूर्ण विचार है। यह कोटे उन वर्गों के लिए आरक्षित हैं जिन्हें समाज में समानता की आवश्यकता है। महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों को इन कोटों का उपयोग करके रेलवे की सेवाओं का उचित लाभ लेना चाहिए। इससे न केवल समाज में समानता का संदेश मिलेगा, बल्कि इन वर्गों को भी सुविधा और सुरक्षा के साथ यात्रा करने का मौका मिलेगा। इसलिए, हमें इन कोटों का सही तरीके से उपयोग करके समर्थन करना चाहिए।
Step 1: Introduction to Quotas in Indian Railways
Divyaang Quotas in Indian Railways इसीलिए रेलवे ने भी अपना ‘स्पेशल कोटा’ कार्ड खेला। मतलब, सीटें सिर्फ़ फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के लिए नहीं, बल्कि कुछ VIP पास भी हैं जैसे महिलाओं के लिए Ladies Quota, सीनियर सिटिज़न के लिए Golden Ticket, और दिव्यांग यात्रियों के लिए Extra Care वाला Zone!
ये कोटा है ना, असल में किसी मैजिक स्पेल से कम नहीं। बुज़ुर्गों को लाइन में लगकर पसीना नहीं बहाना पड़ता, महिलाएँ ट्रिपल सीट पर चढ़ने के झंझट से बच जाती हैं, और दिव्यांग साथियों के लिए तो ये एक छोटा सा सुपरपावर है।
तो अब सवाल ये सब हासिल कैसे करें? क्या कोई गुप्त मंत्र है? या बस सही टाइम पर सही टिकट पकड़ लो? चलो, अब इस रहस्यमयी कोटा की गली में थोड़ा और अंदर चलते हैं… शायद कोई छुपा खज़ाना मिल जाए!
Divyaang Quotas in Indian Railways
Step 2: A Brief Overview of Indian Railways Quotas
भारतीय रेलवे में कोटा की बात छेड़ो तो मामला बड़ा दिलचस्प हो जाता है। सोचो, अपने देश में ट्रेनें किसी जीते-जागते मेले से कम नहीं हर प्लेटफॉर्म पर भीड़, बच्चे रोते, कोई सामान घसीटता, कोई चाय बेचता, और सबको एक ही चिंता सीट मिलेगी या नहीं? उस पर ये कोटा सिस्टम, मानो भीड़ में किसी ने आपके सिर पर छाता खोल दिया हो।
अब, रेलवे का इतिहास पकड़ो। अंग्रेजों ने जब पहली ट्रेन चलाई थी, तो उनका इरादा सिर्फ माल भेजने का था लोगों की परवाह तो बाद में आई। लेकिन जैसे-जैसे लोग ट्रेनों में सफर करने लगे, वैसे-वैसे दिक्कतें भी सामने आईं। महिलाओं के लिए सफर करना मुश्किल, बुजुर्गों की तो पूछो मत, और दिव्यांग यात्रियों की हालत का तो कोई हिसाब ही नहीं। भीड़ में ये लोग अकसर किनारे रह जाते थे—सीट मिलने का तो सपना ही था।
यहीं से रेलवे वालों के दिमाग की बत्ती जली। बोले, क्यों न ऐसे लोगों के लिए खास सीटें रख दी जाएं? फिर क्या था महिलाओं के लिए अलग कोटा, ताकि वो बेफिक्र होकर सफर कर सकें। बुजुर्गों के लिए सीटें रिजर्व, ताकि उनका जोड़ों का दर्द और बढ़ न जाए। दिव्यांग लोगों के लिए भी खास इंतज़ाम सीटें ही नहीं, कई बार तो व्हीलचेयर तक मिल जाती है स्टेशन पर।
वैसे, ये कोटा सिर्फ सीट तक सीमित नहीं है। असल में ये एक सोच है कि हर कोई, चाहे उसकी हालत कुछ भी हो, ट्रेन में अपना हक पा सके। सोचो, अगर कोटा न होता तो आपकी दादी या आपकी मित्र जो अकेली ट्रैवल कर रही है, उन्हें क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते। और सच बताऊं, भारत में ट्रेन छूटना मतलब घर की शांति छूटना इतना बड़ा झमेला हो जाता है!
कोटा का एक और मजेदार पहलू है ये सिस्टम सिर्फ मददगार नहीं, बल्कि लोगों में भरोसा भी पैदा करता है। जब किसी महिला को पता होता है कि उसके लिए सीट रिजर्व है, या बुजुर्गों को टिकट काउंटर पर लंबी लाइन नहीं लगानी, तो दिल में एक सुकून रहता है। और यही सुकून, शायद ट्रेनों की रफ्तार से भी ज्यादा जरूरी है।
अब, काम की बात ये है कि कोटा सिस्टम हर साल थोड़ा-थोड़ा बदलता रहता है। कभी सीटें बढ़ती हैं, कभी नियम बदलते हैं। लेकिन मकसद वही रहता है भीड़ में भी इंसानियत न खो जाए।
तो अगली बार जब ट्रेन में बैठो और तुम्हारे सामने कोई महिला, बुजुर्ग या दिव्यांग व्यक्ति अपनी रिजर्व सीट पर चैन से बैठे दिखे तो समझना, ये कोटा सिस्टम सिर्फ टिकट या सीट का मामला नहीं, ये भारतीय रेलवे की इंसानियत का सबसे बड़ा सबूत है। वरना, इतनी भीड़ में कौन किसे याद रखता है?
Step 3: Why Quotas Are Important for Women, Senior Citizens, and Divyaang
अब देखो, सफर तो सबको करना ही पड़ता है, लेकिन अकेली लड़की या महिला के लिए ट्रेन की भीड़ किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं। सीट मिली तो किस्मत, नहीं तो खड़े-खड़े सफर कटे। और कभी-कभी आसपास ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो सफर को और भी मुश्किल बना देते हैं समझ रहे हो ना?
इसलिए जब रेलवे ने महिला कोटा और लेडीज डिब्बे वाला सिस्टम शुरू किया, तो मानो राहत की सांस आई। अब लड़कियां नॉर्मल अंदाज में, बिना किसी डर के, अपने मोबाइल में लगे रहो या खिड़की से बाहर झांकते रहो कोई अंटी-शंटी नहीं कर सकता! और, ये कोटा सिर्फ सीट नहीं देता, ये ‘सुरक्षा’ का फीलिंग देता है, एक तरह का भरोसा कि ट्रेन में जगह मेरी भी है, और मैं भी पूरी तरह सेफ हूं।
बुज़ुर्गों के लिए ‘रिटायरमेंट’ का मतलब सिर्फ घर बैठना नहीं
अब जरा सोचो, हमारे दादा-दादी या मम्मी-पापा, जिन्हें जिंदगी भर ट्रेन की भागमभाग में सीट के लिए धक्का-मुक्की करनी पड़ी, अब जब उम्र बढ़ गई, तो क्या वो घर में ही बैठे रहें? नहीं! सीनियर सिटीजन कोटा ने खेल पलट दिया है। अब बुज़ुर्ग लोग भी बेफिक्री से चाय की थरमस, अखबार और कुछ यादें लेकर सफर पर निकल सकते हैं। सीट पक्की, तो टेंशन फ्री। और हां, ये सिर्फ आराम या सुविधा का मामला नहीं है, ये समाज के उस हिस्से को इज्ज़त देने का तरीका है, जिन्होंने अपनी जवानी में हमारे लिए रास्ते बनाए। अब उनकी बारी है, ऐश करने की कम से कम ट्रेन में तो!
दिव्यांग यात्रियों के लिए सफर में ‘संघर्ष’ नहीं, ‘सम्मान’ चाहिए
अब दिव्यांग यात्रियों को देखो उनके लिए तो सफर करना एक अलग ही लेवल की जद्दोजहद रहा है। व्हीलचेयर से चढ़ना, रैंप ढूंढना, टॉयलेट का मसला all in all, एक लंबी लिस्ट है। लेकिन जब रेलवे ने दिव्यांग कोटा और खास डिब्बे दिए, तो ये सिर्फ सुविधा नहीं थी, ये असल मायनों में ‘सम्मान’ था। अब वो भी अपनी मर्जी से, बिना एहसान के, ट्रेन का टिकट ले सकते हैं, सीट पक्की मिलती है, तो सफर आसान हो गया। और सबसे बड़ी बात अब किसी की मदद मांगने की मजबूरी नहीं, क्यूंकि सिस्टम ने ही उनका ख्याल रखा है।
अब सोचो, अगर ये कोटे न होते, तो क्या सच में ‘सबका साथ, सबका विकास’ मुमकिन था? ये कोटे सिर्फ कागजों का खेल नहीं हैं, ये असल में रेलवे के जरिए समाज का आईना हैं जहां हर किसी को उसका हक मिलना चाहिए।
Step 4: Understanding the Different Quotas
अब लेडीज कोटा ये सिर्फ एक रूल नहीं, बल्कि एक तरह की ‘सेफ्टी नेट’ है। कई बार तो लेट नाइट ट्रेन पकड़नी पड़ जाए, या फिर ग्रुप में ट्रैवलिंग हो महिलाओं को स्पेशल सीट्स मिलती हैं। सोचो, कोई लड़की पहली बार अकेली सफर कर रही हो, घरवाले भी फिक्रमंद रहते हैं, तो ये कोटा उस डर को थोड़ा कम कर देता है। ऊपर से, ट्रेन के क्लास और रूट के हिसाब से सीटें घटती-बढ़ती हैं तो थोड़ा ‘लकी ड्रा’ जैसा फील भी आता है! वैसे, कभी-कभी टिकट कंफर्म न मिले, तो यही कोटा लाइफसेवर बन जाता है।
सीनियर सिटिज़न कोटा की बात करें तो ये असल में बुजुर्गों के लिए रेलवे का ‘रेड कार्पेट’ है। बताओ, 65 साल के अंकल जी या 60 पार की आंटी, जिनके लिए लंबी कतारें अब सपने जैसी लगती हैं, उन्हें सीधा रिजर्व सीट मिल जाती है। त्योहारों में जब टिकट मिलना मुसीबत हो जाए, ये कोटा ‘जुगाड़’ नहीं बल्कि इज्ज़तदार सहूलियत है। और हां, कई बार तो बच्चे खुद अपने माता-पिता को ये फायदा दिलाने के लिए टिकट बुक करते हैं थोड़ी सी राहत, थोड़ा सा सुकून।
अब दिव्यांग कोटा ये तो एकदम दिल छू लेने वाला पहलू है। रेलवे ने बस नाम के लिए ही नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल तरीके से दिव्यांग यात्रियों के लिए सीट्स और खास सुविधाएं दी हैं। व्हीलचेयर, रैंप, अलग डिब्बे यानी सफर सिर्फ ‘हो सके तो’ वाला नहीं, बल्कि ‘जरूर होगा’ वाला बन जाता है। कभी देखा है, जब कोई दिव्यांग मुसाफिर बिना किसी तकलीफ के ट्रेन में बैठता है, खुद-ब-खुद चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
असल में, ये कोटा सिस्टम सिर्फ कोई नंबर गेम नहीं है। ये रेलवे की कोशिश है, कि हर कोई चाहे वो महिला हो, बुजुर्ग हो या दिव्यांग ट्रेन की भागदौड़ में कहीं पीछे न छूटे। हां, कभी-कभी बुकिंग साइट पर चक्कर काटने पड़ते हैं, सीट मिल जाए तो जश्न मनाओ, वरना अगली बार ट्राई करो। लेकिन एक बात माननी पड़ेगी इन कोटों ने इंडिया की ट्रेनों में सफर को थोड़ा कम ‘स्ट्रेसफुल’ और थोड़ा ज्यादा ‘इंक्लूसिव’ बना ही दिया है।
Step 5: What is the Ladies Quota?
भारतीय रेलवे का महिला कोटा अब इसपे थोड़ा दिलचस्पी लेकर बात करें तो, ये कोई बस सरकारी फॉर्मेलिटी नहीं है, बल्कि असली लाइफ से निकली एक ज़रूरत है।
तो, रेलवे ने सोचा क्यों न महिलाओं के लिए कुछ खास किया जाए? और यहीं से आया ‘महिला कोटा’ का कंसेप्ट। इसके तहत कुछ सीटें सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के लिए रिज़र्व कर दी जाती हैं। और हां, ये कोई छोटा-मोटा एहसान नहीं, बल्कि सेफ्टी, कंफर्ट और थोड़ी-सी ‘पर्सनल स्पेस’ का मामला है वो भी उस देश में जहाँ ‘स्पेस’ शब्द खुद ट्रेन के डिक्शनरी में मिसिंग होता है!
अब बात करते हैं असली फायदों की सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि आपको रात को या किसी अनजान रूट पर ट्रेवल करना हो, तो खुद को और अपने साथ वाली महिलाओं को लेकर कम से कम एक टेंशन तो आउट। कोई अंजान आदमी आके आपके ऊपर झुक के सोएगा नहीं (हाँ, ये भी होता है), और आप बिना किसी डर के चैन से अपनी सीट पर बैठ सकती हैं, सो सकती हैं या फिर Instagram reels बना सकती हैं – आपकी मर्जी!
अब, पर्सनल एक्सपीरियंस की बात करें तो, कई महिलाओं ने बताया है कि बिना इस कोटे के, उन्हें सफर करना काफी डरा सकता था। किसी ने दिल्ली से लखनऊ का सफर किया हो या मुंबई लोकल में रोज़ की जद्दोज़हद, महिला कोटा एक भरोसा देता है कि हाँ, आप अकेली नहीं हो।
हाँ, सिस्टम में गड़बड़ियां भी हैं कभी-कभार सीटें सही से अलॉट नहीं होतीं, या फिर कुछ स्मार्ट लोग जुगाड़ से घुस भी जाते हैं, लेकिन फिर भी, ये पहल एक गेम-चेंजर है। सरकार और रेलवे को इसमें और इनोवेशन लाने की ज़रूरत है जैसे, ऐप पर रियल टाइम ट्रैकिंग, ज्यादा सीट्स, और स्ट्रिक्ट चेकिंग वगैरह।
सोच के देखो, अगर ये कोटा न होता, तो शायद कई महिलाएं ट्रेनों में सफर करने से ही कतरातीं। ये न सिर्फ सेफ्टी बढ़ाता है, बल्कि एक पॉजिटिव मैसेज भी देता है कि हाँ, पब्लिक स्पेस में महिलाओं की जगह है, और वो भी पूरी इज्ज़त और कंफर्ट के साथ।
Step 6: Booking Tickets under the Ladies Quota
लेडीज कोटा में टिकट बुकिंग वाह! आज के टाइम में तो सचमुच लाइफ हैक लगती है, खासकर जब आपको IRCTC की वेबसाइट या मोबाइल ऐप जैसी जादुई चीज़ें हाथ में हों। सोचो ज़रा, पहले के ज़माने में, टिकट के लिए घंटों कतार में खड़े रहना, फिर काउंटर वाले से झगड़ना, और आखिर में सीट मिले न मिले सब भगवान भरोसे! अब? बस मोबाइल निकाला, दो मिनट में सब सेट।
सबसे पहले, IRCTC की साइट या ऐप खोलो हां, वही जिसमें सबकुछ मिलता है, टिकट से लेकर स्नैक्स तक! अपनी मनपसंद ट्रेन और तारीख चुनो (क्योंकि हर किसी की अपनी ट्रैवल ड्रीम होती है, है ना?), फिर ‘क्लास’ के सेक्शन में जाकर देखो, लेडीज कोटा है या नहीं। अगर दिख जाए, तो दिल खुश हो जाता है! अब बुकिंग डिटेल्स में ‘लेडीज कोटा’ पर टिक करो ये ऑप्शन चूकना मत, वरना फिर से पुरानी दौड़-भाग।
यात्री डिटेल और पेमेंट डालना तो वैसे भी आजकल बच्चों का खेल है UPI, कार्ड, वॉलेट… जो मन करे, हाथ आज़मा लो! और फिर, एक क्लिक में कन्फर्मेशन मैसेज “मुबारक हो, आपकी सीट पक्की!”
अब ज़रा सोचो, ये कोटा किसलिए बना है? सिर्फ फॉर्मेलिटी नहीं है, इसके पीछे असली मायने छुपे हैं।
- सबसे बड़ा फायदा तो सिक्योरिटी का है लेडीज कोटा का मतलब है, आपके लिए अलग से सीट, तो कोई अनजान बंदा आकर परेशान नहीं करेगा।
- और आराम की बात करें, तो अब सीट के लिए झगड़ने या खड़े-खड़े सफर करने का डर नहीं। भीड़ हो या शादी का सीजन, लेडीज कोटा वाली सीट लगभग हर बार मिल ही जाती है।
- एक्सक्लूसिव फीलिंग मानो IRCTC ने कहा हो, “ये सीट आपकी है, किसी और को हाथ लगाने की इजाज़त नहीं!”
- और हां, सीट अवेलेबिलिटी भी बढ़ जाती है, क्योंकि ये कोटा रेगुलर अपडेट होता रहता है, ताकि हर महिला को सफर में चैन मिले।
मज़ेदार बात ये है कि बड़े शहरों या पॉपुलर रूट्स में ये ऑप्शन लगभग हर ट्रेन में मिल जाएगा, लेकिन फिर भी, पहले से चेक कर लो कभी-कभी किस्मत भी टेस्ट लेती है!
तो अगली बार जब ट्रेन पकड़नी हो, टिकट बुक करते वक्त ‘लेडीज कोटा’ को जरूर याद रखना। पुरानी परेशानियों को बाय-बाय बोलो, और नए जमाने के इस स्मार्ट फीचर का भरपूर फायदा उठाओ। IRCTC ने तो महिलाओं के लिए सफर को वाकई आसान बना दिया है अब बस बैग पैक करो, टिकट बुक करो, और सफर का मजा लो!
Step 7: Myths and Misconceptions about Ladies Quota
सबसे पहले तो, ये जो “महिला कोटा मतलब दूसरों का हक छीनना” वाला फंडा है ना, वो तो इतना बासी हो चुका है कि अब सुनकर हंसी आ जाती है। भाई, ये सीटें तो ट्रेनों में वैसे भी गिनी-चुनी होती हैं, ऊपर से महिलाओं के लिए अलग से रिजर्व की जाती हैं बाकी पैसेंजर का तो बाल भी बांका नहीं होता। ये ऐसे समझो, जैसे किसी पार्टी में VIP गेस्ट के लिए अलग टेबल रख दी गई हो बाकी सबका खाना, मस्ती, सब जस का तस।
अब आते हैं उस दूसरी ग़लतफहमी पर, जो बड़े दिलचस्प ढंग से फैलती है: “महिला कोटा तो है ही नहीं, मिलता ही नहीं, बस दिखावा है!” अरे भाई, ये कोई छुपा हुआ खजाना नहीं है! रेलवे वालों ने बाकायदा नोटिस बोर्ड पर, वेबसाइट पर, टिकट काउंटर पर हर जगह इसका जिक्र किया है। और हां, अगर सीट फुल मिल रही है तो इसका मतलब ये नहीं कि कोटा ही गायब है शायद उस दिन ज्यादा महिलाएं ट्रैवल कर रही होंगी। वैसे भी, अब महिलाएं हर जगह दिख रही हैं ऑफिस, कॉलेज, ट्रैक, स्टेशन—तो कोटा की सीटें भी बुक होंगी ही।
सीधा सा फार्मूला है जितना कम अफवाहों पर ध्यान दोगे, उतना ही ज़्यादा इस सिस्टम का फायदा मिलेगा। तो अगली बार जब कोई बोले, “महिला कोटा तो बस नाम का है,” तो मुस्कुरा के जवाब देना“भाई, ये तो राइट है! और हां, सीट भी मिलती है सच्ची।”
Step 8: Leveraging the Senior Citizen Quota
सीनियर सिटिजन कोटा सुनते ही दिमाग में एकदम से वो दादाजी की छड़ी, नानी की मुस्कान और बस का टिकट काउंटर याद आ जाता है। वैसे भारतीय रेलवे का ये सिस्टम, मानो बुजुर्गों के लिए किसी किस्म का VIP पास हो। ट्रेन का प्लेटफॉर्म, शोर-शराबा, भीड़ का समंदर इन सब के बीच बुजुर्गों के लिए रिजर्व सीट होना, सच बताऊँ, किसी वरदान से कम नहीं है। सीढ़ियाँ चढ़ना, भारी बैग उठाना, और सीट के लिए लड़ाई ये सब जवानी में तो ठीक है, लेकिन उम्र ढलते-ढलते ये सब वाकई सिर दर्द बन जाता है।
रेलवे ने जब ये सीनियर सिटिजन कोटा रखा, तो सिर्फ ये नहीं सोचा कि “चलो, कुछ सीटें बुजुर्गों के लिए अलग कर देते हैं।” इसके पीछे थोड़ी सी इंसानियत भी है जैसे नाना-नानी का ख्याल रखना, उन्हें सफर में कम से कम तकलीफ हो। और हाँ, ये कोटा कोई दिखावे के लिए नहीं है। ट्रेन में चढ़ने-उतरने की जद्दोजहद, लंबी लाइनें, और ऊपर से सीट न मिले तो बुजुर्गों के लिए सफर क्या टॉर्चर बन जाता। रेलवे ने सोचा, चलो, इस फालतू की भागदौड़ से उन्हें थोड़ा बचाया जाए।
अब सवाल इस कोटे का फायदा किसे मिलता है? आसान सा फॉर्मूला है: महिलाओं के लिए 60+ और पुरुषों के लिए 65+। तो अगर दादी 61 की हैं, तो लाइन में खड़े होने की झंझट भूल जाएँ। लेकिन दादाजी अगर अभी 64 के हैं, तो एक साल और इंतजार करना पड़ेगा! ये क्राइटेरिया इसलिए सेट किया गया कि सही मायनों में जिनको जरूरत है, उन्हीं तक फायदा पहुँचे। वैसे, कई बार लोग जुगाड़ लगाने की सोचते हैं, लेकिन रेलवे वाले भी अब स्मार्ट हो गए हैं उम्र का प्रूफ माँगते हैं भाई!
बाकी, सिर्फ सीट ही नहीं मिलती, टिकट पर डिस्काउंट भी मिलता है। सोचिए, पहले तो सीट पक्की, ऊपर से पैसे भी बच गए बुजुर्गों की जेब में थोड़ी राहत की सांस। वैसे ये छूट छोटी-मोटी नहीं है, कई बार तो टिकट का अच्छा-खासा हिस्सा बच जाता है। अब पैसा तो सबको प्यारा होता है, चाहे उम्र कोई भी हो!
और बुकिंग का क्या? आज के डिजिटल ज़माने में IRCTC की वेबसाइट या मोबाइल ऐप खोलो, लॉगिन करो, ट्रेन ढूँढो, डेट डालो, क्लास सिलेक्ट करते वक्त ‘सीनियर सिटिजन कोटा’ वाला ऑप्शन टिक कर दो, बाकी डिटेल्स भर दो, पेमेंट कर दो हो गया काम! वैसे, अगर दादाजी को ऑनलाइन बुकिंग का झंझट पसंद नहीं, या स्मार्टफोन के नाम पर अभी भी पुराने वाला नोकिया ही चल रहा है, तो स्टेशन के टिकट काउंटर पर जाकर बोल दो “सीनियर सिटिजन कोटा में टिकट चाहिए।” काउंटर वाला भी मुस्कुरा के टिकट पकड़ा देगा, क्योंकि उसे पता है ये कोई आम यात्री नहीं, VIP है!
Step 9: Exploring the Divyaang Quota
अब, देखो, ये कोटा किसी एक बड़े-बड़े वादों या सरकारी कागजों तक सीमित नहीं है। असली फर्क तभी दिखता है जब सफर के मैदान में उतरते हैं। दिव्यांग यात्रियों के लिए अकेले टिकट मिलना ही नहीं, बल्कि पूरे सफर में उन्हें एहसास हो “हां भाई, मेरे लिए भी सोचा गया है!” और ये सिर्फ सीट तक सीमित नहीं है। वो व्हीलचेयर की आवाज़, स्टेशन के हर कोने में दिखते रैम्प, टॉयलेट्स जो किसी आम आदमी को पता भी न हों, मगर किसी दिव्यांग के लिए वो राहत की सांस जैसे हैं।
और देखो, ये कोटा किसी भी उम्र के लिए है। मतलब, छोटा बच्चा हो या बुजुर्ग दादी सरकारी सर्टिफिकेट है, तो आपका हक पक्का। यहां कोई उम्र की लिमिट नहीं, न कोई ‘पहले आओ, पहले पाओ’ का चक्कर। और वो सर्टिफिकेट भी, यूं ही नहीं मिलता; पीछे एक लंबा चक्कर होता है, डॉक्टर्स, सरकारी दफ्तर, वगैरह-वगैरह। लेकिन एक बार मिल गया, तो ज़िंदगी में सफर थोड़ा आसान हो जाता है।
अब बात करें सुविधाओं की अब ये कोई मामूली बात नहीं है कि कोच में सीट रिज़र्व है या व्हीलचेयर मिल गई। असल में ये एक तरह का इशारा है कि, “देखो, तुम्हारे लिए भी ये देश चलता है, तुम्हारे लिए भी ट्रेन की सीटी बजती है।” स्टेशन पे रैम्प, कोच में स्पेशल सीट, और सबसे बड़ी बात टॉयलेट्स। अरे भाई, सोचो तो सही, एक आम आदमी शायद कभी इस बारे में सोचता भी न हो, पर किसी व्हीलचेयर यूज़र के लिए ये बंधा-बंधाया टॉयलेट क्या मायने रखता है!
आखिर में, बात बस इतनी है सुविधाएं तो हैं ही, मगर असली बात ये है कि ये पूरा सिस्टम एक उम्मीद देता है। ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकते हुए, हर दिव्यांग यात्री को ये फील होता है “मैं भी कहीं से कम नहीं, मेरे लिए भी रास्ता खुला है।” और जब समाज किसी को ये एहसास दिला दे, तो यकीन मानो, असली रेल क्रांति वहीं से शुरू होती है!
Step 10: How to Book Tickets Under the Divyaang Quota
टिकट बुकिंग में दिव्यांग कोटा अब इसे सीरियसली मत लो, ऐसा नहीं है कि आपको कोई गुप्त कोड या ‘मिशन इम्पॉसिबल’ वाला मूव करना है। सच कहूँ तो, IRCTC ने ये इतना सिंपल बना दिया है कि दादी भी कर लें (बस, इंटरनेट चलाना आना चाहिए)। बस अपनी ट्रेन, तारीख, स्टेशन डालो, और बाकी चीज़ें तो वैसे भी हर कोई करता है। असली ट्विस्ट आता है विकलांगता का सर्टिफिकेट। भाई, ये कोई हॉस्टल का ‘बोनाफाइड’ नहीं है सरकारी सर्टिफिकेट चाहिए, वो भी ओरिजिनल और साफ-सुथरा।
अब थोड़ा डीटेल में चलते हैं IRCTC पर लॉग इन किया, अपनी मनपसंद ट्रेन पकड़ी, डेट फिक्स की, अब जैसे ही क्लास चुनने का टाइम आया, वहाँ एक छोटा सा टिक बॉक्स मिलेगा दिव्यांग कोटा। जरा सा ध्यान दो, मिस मत कर देना। इसके बाद पैसेंजर की डीटेल्स भरनी है, और यहाँ पर असली खेल है सर्टिफिकेट का। लोग सोचते हैं फोटो खींच के लगा देंगे, लेकिन भाई, सरकार की मुहर वाली डॉक्युमेंट लगाओ, वरना आगे गेट पर ही फंस जाओगे।
अब पेमेंट कर दिया, टिकट डाउनलोड हो गया काम खत्म? नहीं! असली मज़ा सफर में है। देखो, ट्रेन में टीटीई (टिकट चेकर) के सवालों से बचना है तो अपना सर्टिफिकेट प्रिंट करवा के रखना ही पड़ेगा। कोई स्मार्टफोन दिखा के बचने की कोशिश मत करना कभी-कभी वो लोग भी पुराने ख्याल के होते हैं। और अगर हार्ड कॉपी भूल गए तो फिर ‘बहारी’ डायलॉग सुनने के लिए तैयार रहना।
अब सबसे मज़ेदार हिस्सा सीट्स! IRCTC वाले आपके लिए स्पेशल डिब्बा रखते हैं, जिसमें वाइड गलियारा, रेलिंग, और वॉशरूम सबकुछ दिव्यांग यात्रियों के हिसाब से डिजाइन किया गया है। कभी-कभी लगता है, ‘ये तो वीआईपी ट्रीटमेंट है!’ पर ये हक है, कोई फेवर नहीं। अगर बाय चांस सीट फुल हो गई तो घबराओ मत स्टेशन के स्टाफ से बात करो, वो भीड़ में जगह ढूँढ ही देंगे। और हाँ, रेलवे वाले कभी-कभी ढीले पड़ जाते हैं, तो थोड़ा टशन में रहना, ‘भाई, ये मेरा हक है।’
वैसे, एक-आध सलाह और कभी भी लास्ट मिनट पर बुकिंग मत करना, क्योंकि दिव्यांग कोटे की सीटें लिमिटेड होती हैं। और, अगर ट्रिप लंबी है तो अपनी जरूरत की चीज़ें साथ रख लो रेलवे वाले सबकुछ नहीं दे सकते, आखिर वो भी इंसान हैं, सुपरमैन नहीं।
Step 11: Benefits of the Divyaang Quota
दिव्यांग कोटा अब इसे सिर्फ़ सरकारी योजना मत समझो, ये असल में पूरे सफर का ट्रैक ही बदल देता है। Imagine करो, बाकी लोग ट्रेन में चढ़ने के लिए लाइन में लगे हैं, कोई धक्का, कोई चिल्ल-पों, और उधर दिव्यांग यात्रियों के लिए सीट अलREADY रिज़र्व है। सीधा VIP ट्रीटमेंट, कोई भागमभाग नहीं, कोई “भैया, थोड़ा खिसको” वाला ड्रामा नहीं। रेलवे ने पूरी प्लानिंग के साथ उनके लिए स्पेशल जगह रखी है
अब सिर्फ़ सीट ही नहीं, वहाँ की सुविधाएँ भी ऐसी कि लगे, चलो कहीं तो ध्यान दिया गया। सुगम्य टॉयलेट, चौड़े दरवाज़े, रैम्प, हैंडरेल मतलब जैसे रेलवे ने ठान लिया हो कि “अबकी बार, हर कोई आराम से ट्रैवल करेगा!” व्हीलचेयर लेकर आना है? कोई दिक्कत नहीं। और हाँ, ऐसा नहीं कि बस ट्रेन में चढ़ गए तो मदद खत्म। बोर्डिंग के टाइम पर रेलवे का स्टाफ खुद आगे आकर, एकदम जिगरी दोस्त की तरह, सामान ले जाने में हाथ बँटाता है, सीट ढूँढने में गाइड करता है। कभी-कभी तो लगता है, अगर ये सुविधा हर जगह मिलती, तो लाइफ आधी टोपी हो जाती!
अरे, और सुनो स्टेशन पर पहुँचकर आपको अलग से चिल्लाना या मैनेजर ढूँढना नहीं पड़ेगा। दिव्यांग कोटा के नाम पर, सारी चीज़ें ऑटोमेटिकली मिल जाती हैं। सामान भारी है? कोई बात नहीं, हेल्प मौजूद है। सीट कहाँ है, पता नहीं? कोई बात नहीं, कोई न कोई स्टाफ आपको वहाँ तक छोड़ देगा। सोचो, ऐसी छोटी-छोटी बातों का कितना बड़ा असर होता है वरना आम दिनों में तो लंबी दूरी की यात्रा दिव्यांग लोगों के लिए किसी एडवेंचर से कम नहीं लगती।
Step 12: Interactive Table of IRCTC Quotas and Eligibility
यार, भारतीय रेलवे के कोटा सिस्टम को समझ पाना वैसे ही किसी जादू-टोने से कम नहीं है। एक तरफ महिलाओं का कोटा, फिर सीनियर सिटिज़न, दिव्यांग, और भी जाने क्या-क्या हर किसी के लिए अलग जुगाड़! अब सोचो, इस सब झंझट को झटपट सुलझाने के लिए एक इंटरैक्टिव टेबल मिल जाए, तो क्या ही बात है। जैसे ही खोलो, सामने फ़िल्टर कोटा चुनो, उम्र डालो, अगर दिव्यांग हो तो वो सेलेक्ट करो, ग्रुप में कितने लोग हैं, सब-कुछ। बस चुटकी में सब क्लियर!
जरा सोचो, अगर IRCTC इस टूल को अपनी वेबसाइट या मोबाइल ऐप में फिट कर दे, तो क्या मस्त रहेगा। लोग अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से एकदम सही कोटा ढूंढ सकते हैं, बिना घंटों लाइन में खड़े हुए या वेबसाइट की भूल-भुलैया में फंसे हुए। सच में, एक क्लिक पर सबकुछ कौनसे कोटे में कितनी सीट बची है, किस रूट पर है, कौनसी ट्रेन में है सब सामने।
Step 13: Regional Trends in Quota Availability
देखिए भाई, भारतीय रेलवे में कोटा की जुगाड़ कोई मामूली चीज़ नहीं है. ये ऐसा है जैसे हर सीट के पीछे पूरी गेम थ्योरी चल रही हो कभी-कभी तो लगता है जैसे रेलवे वालों ने सीटों को छुपा के रखा है, “ढूँढो ढूँढो, किस्मत आजमाओ!”
इसीलिए वो इंटरैक्टिव मैप बड़ा काम का है, दोस्त. आप अपनी लोकेशन डालो, ट्रेन चुनो, और देख लो कहाँ jackpot लग सकता है. मानो जैसे रेलवे ने आपके लिए गूगल मैप्स में भी लोकेशन शेयर कर दी, “यहाँ सीट मिल सकती है, यहाँ भूल जाओ.”
अब जो बातें अक्सर लोग इग्नोर कर देते हैं कोटा डिस्ट्रिब्यूशन के पीछे की असली वजहें.
सबसे बड़ी बात यात्रा की मांग. दिल्ली-कोलकाता, मुंबई-पुणे, ऐसे हाईवे रूट्स पर सीट के लिए तो जैसे कुश्ती हो रही है. वहाँ हर सेक्शन में कोटा की अलग बुकिंग, जैसे रेलवे भी कह रहा हो, “भाई, सबको खुश रखना है.”
अब पॉपुलेशन डेंसिटी शहरों में लोग ज्यादा, तो महिलाओं, बुज़ुर्गों, दिव्यांगों का आंकड़ा भी हाई. और गाँवों में? कभी-कभी तो लगता है, ट्रेन में गार्ड ही अकेला बैठा हो!
बुनियादी ढांचे की बात करें तो आपने कभी देखा है, कुछ स्टेशन ऐसे चमचमाते हैं जैसे एयरपोर्ट और कुछ ऐसे जैसे 90s की फिल्मों के विलेन का अड्डा! जहाँ स्टेशन नए, लिफ्ट-रैंप सब कुछ, वहाँ रेलवे भी दिल खोलकर सीटें देता है. बाकी जगह “भैया, वेटिंग लिस्ट पे रहो.”
और फाइनली, पॉलिटिक्स हाँ, जी, यहाँ भी राजनीति चलती है. कुछ राज्य अपने वोटर बेस को खुश करने के लिए extra कोटा या स्कीम्स निकाल देते हैं. जैसे चुनाव नज़दीक, तो महिलाओं के लिए कोटा डबल कर दो सीटें बाँटो, वोट पाओ!
एक और बात कभी-कभी रेलवे अचानक कोई पायलट प्रोजेक्ट चला देता है. “अब इस रूट पर एक्स्ट्रा कोटा ट्रायल पर है, देख लो भाग्य आजमा लो!”, फिर सब लोग app खोलकर चेक करने लगते हैं “भाई, आज हमारी किस्मत चमकी या नहीं?”
इन सबके बीच, जो असली मास्टरस्ट्रोक है वो है प्लानिंग! अगर आप वाकई चाहते हैं कि आपकी दादी या बहन की सीट कन्फर्म हो जाए, तो सबसे पहले अपना रूट, टाइमिंग और कोटा availability अच्छे से चेक करो. नहीं तो फिर वही पुरानी कहानी “अरे यार, वेटिंग आ गई!”
आखिर में, रेलवे कोई सीधा-सादा सिस्टम नहीं है, ये एक चलती-फिरती पहेली है! सीट चाहिए? तो थोड़ा detective बनो, थोड़ा जुगाड़ लगाओ, और हाँ IRCTC पर जल्दी login कर लो. वरना सीट तो दूर, कन्फर्मेशन का मैसेज भी सपना बन जाएगा!
Step 14: Common Problems and Solutions for Booking with Quotas
टिकट बुकिंग में कोटा ओह भाई, ये तो एकदम जुगाड़ू गेम है! महिला, सीनियर सिटिजन, या दिव्यांग कोटा की बात चल रही हो तो हर कोई सोचता है, “बस आज तो सीट मिल जाए!” लेकिन हकीकत में ये उतना सिंपल कहाँ होता है? कई बार तो ऐसा लगता है जैसे पूरी दुनिया उसी दिन, उसी ट्रेन, उसी कोटा वाली सीट पर बैठने का सपना देख रही हो। और आप बेचारे मोबाइल या लैपटॉप के आगे बेचैन होकर बार-बार रिफ्रेश मारते रहते हैं।
अब देखो, कोटा वाली सीटें वैसे ही कम होती हैं, ऊपर से छुट्टियों में या पीक सीजन में तो मिनटों में गायब! कई बार तो लगता है कि टिकट नहीं, कोई IPL का फाइनल टिकट निकाल रहा हूँ। असली ट्रिक क्या है? फटाफट बुकिंग! मतलब, जैसे ही रेलवे 120 दिन का विंडो खोले, आप घात लगाए बैठें। कुछ लोग तो बाकायदा अलार्म सेट करके, चाय के साथ लैपटॉप खोलकर मिशन शुरू करते हैं। और हाँ, एक ट्रेन में नहीं मिला? कोई बात नहीं, दूसरी ट्रेन या रूट का भी ऑप्शन खुले रखो। किस्मत कब पलट जाए, कौन जाने!
अब ऑनलाइन बुकिंग की बात करें तो, IRCTC कभी-कभी ऐसा बिहेव करता है जैसे उसका भी मूड स्विंग है। कभी वेबसाइट स्लो, कभी पेमेंट फेल, तो कभी OTP ही नहीं आता! वैसे, सबसे बेस्ट तो यही है अपना अकाउंट हमेशा अपडेट रखो, और पेमेंट के टाइम ब्राउज़र बदलना या कैश क्लियर करना कभी-कभी जादू कर देता है। और अगर बार-बार सिस्टम नखरे दिखाए, तो IRCTC कस्टमर केयर को कॉल करने में हिचको मत। कम से कम लैपटॉप पर गुस्सा निकालने से बेहतर है!
सीट अलॉटमेंट का भी अपना ड्रामा है। कई बार तो आप सोचते हो, “आज तो विंडो सीट मेरी!” लेकिन रेलवे का सिस्टम बोले “भाई, ले ले मिडल सीट!” असली बात ये है कि कोटा की पॉलिसी थोड़ी पेचीदा है, और लास्ट मिनट में सिस्टम जो भी दे, वही मिलना है। सीट मैप देखना जरूरी है, और टिकट बुक करते वक्त डिटेल्स ध्यान से चेक करो। अगर फिर भी गड़बड़ हो गई स्टेशन पर रेलवे वालों से बात कर लो। कई बार उनकी जुगाड़ वाली भाषा में ही हल निकल आता है।
एक और टिप कभी-कभी लोग सोचते हैं कि कोटा सिर्फ सीट दिलाने के लिए है, लेकिन असल में ये सिस्टम उन लोगों के लिए है जिनको वाकई में इसकी जरूरत है। तो, अगर आप सच में उस कोटे के हकदार हैं, तो हक से इस्तेमाल करो और दूसरों के लिए जगह भी छोड़ दो।
आखिर में, टिकट बुकिंग कोई सीधी लाइन नहीं है ये तो कभी-कभी नागिन डांस जैसा है, कभी सीधा, कभी टेढ़ा, लेकिन मजा भी खूब है। थोड़ा धैर्य, थोड़ा स्मार्ट वर्क, और थोड़ी किस्मत बस, फिर तो आपकी सीट पक्की! और हाँ, अगर सीट ना मिले… तो अगली बार फिर ट्राई करो, हार मानना तो रेलवे वाले भी नहीं सिखाते!
Step 15: Other Useful Tips and Tricks for Quota Booking
अरे भाई, स्पेशल कोटे में टिकट बुक करना ये तो वैसे है जैसे IPL में सुपर ओवर खेलना! कभी लगता है, आज तो सीट मिलेगी ही मिलेगी, और कभी-कभी तो सारा जुगाड़ लगाने के बाद भी सिस्टम बोल देता है “ट्राई अगेन नेक्स्ट टाइम, दोस्त!” चलो, बात करते हैं कैसे इस टिकट की रेस में जीत सकते हैं।
IRCTC वेबसाइट यहाँ हर क्लिक मायने रखता है
सबसे पहले तो IRCTC की वेबसाइट को ऐसे इस्तेमाल करो जैसे कोई गेमिंग प्रो अपना गेमिंग सेटअप। वहाँ एडवांस्ड सर्च का ऑप्शन है इसका मतलब सीधा है कि तुम्हें लंबी-चौड़ी लिस्ट में से ट्रेनें छांटने की ज़रूरत नहीं। कोटा, क्लास, स्टेशन सब फिल्टर मारो और सिर्फ वही ट्रेन दिखेगी जो तुम्हारे मतलब की है। टाइम की बचत, टेंशन की छुट्टी।
अब ये ऑटो-कन्फर्मेशन फीचर भाई, ये टेक्नोलॉजी का जादू है। अपनी पर्सनल डिटेल्स पहले से सेव रखो, जैसे रोल नंबर पेपर देने से पहले याद कर लेते थे, वैसे! जैसे ही विंडो खुले, बस एक क्लिक और सीट पक्की। वरना तो आधे टाइम में लोग OTP ही ढूंढते रह जाते हैं और सीट उड़न छू।
सीट प्रेफरेंस – इसे हल्के में मत लो!
अगर तुम्हारे ग्रुप में कोई सीनियर सिटिजन है या फिर किसी को व्हीलचेयर चाहिए – ये सब प्रेफरेंस पहले ही सेट करना वरना बाद में “सर, लोअर बर्थ तो गई” सुनना पड़ेगा। कुंजी यही है: जो चाहिए, पहले ही मांग लो।
मोबाइल ऐप – हर जगह टिकट किंग बनो
अब बात करते हैं IRCTC के मोबाइल ऐप की। भाई, ये ऐप तो सच में लाइफ सेवर है। चाहे तुम नागपुर की सर्दी में कांप रहे हो या दिल्ली की मेट्रो में फंसे हो, बस फोन निकालो, ऐप खोलो और सीट पे कब्जा जमा लो। और वो भी इंस्टेंट – जैसे मैगी के दो मिनट!
यूपीआई, वॉलेट, कार्ड – पेमेंट के इतने ऑप्शन हैं कि कभी-कभी कन्फ्यूज हो जाओ कि किससे पैसे कटवाऊँ। लेकिन एक बात बोलूं, ये सब फीचर्स असली में तब काम आते हैं जब बुकिंग का टाइम हो और इंटरनेट की स्पीड लंगड़ाने लगे। ऐप में थोड़ा सिग्नल भी हो तो टिकट निकल ही सकता है।
ग्रुप बुकिंग – टीमवर्क दिखाओ
अब सोचो, पूरा ग्रुप है – मौसी, ताऊ, बुआ, दोस्त, सब साथ जा रहे हैं। स्पेशल कोटा चाहिए, तो सबका डिटेल अलग से डालना – नाम, उम्र, पहचान पत्र – सब कुछ। एक बार में सबका नाम डालोगे, तो बाद में कोई रह न जाए। और हाँ, ग्रुप बुकिंग में थोड़ा एडवांस में प्लान करो, वरना बाद में “दो का कन्फर्म, बाकी वेटिंग” स्टाइल में रह जाओगे। वैसे भी, एक साथ सीट मिल जाए तो सफर का मजा ही अलग है – गिटार, ताश, गप्पें – और क्या चाहिए!
कुछ बोनस टिप्स – एक्स्ट्रा मसाला
- बुकिंग का टाइम नोट कर लो – सुबह 10 बजे स्पेशल कोटे की लाइन लगती है। अलार्म सेट कर लो, वरना नींद में सीट गई समझो।
- इंटरनेट स्पीड – भाई, ये सबसे बड़ा गेमचेंजर है। अगर वाई-फाई स्लो है, तो मोबाइल डेटा ट्राय करो।
- कभी-कभी ट्रैवल एजेंट भी काम आ जाते हैं। हाँ, थोड़े पैसे एक्स्ट्रा लग सकते हैं, लेकिन जब टिकट हाथ में हो तो दिल खुश हो जाता है।
सीधे शब्दों में कहूं बुकिंग करते वक्त थोड़ा स्मार्ट बनो, थोड़ा तेज रहो, और थोड़ा जुगाड़ लगाओ। रेलवे का सिस्टम जितना तगड़ा है, उतना ही पक्का तुम्हारा इरादा होना चाहिए। याद रखो “जो कोशिश करता है, वही टिकट जीतता है!” चलो, अब अगली बार सीट छूटी तो मत कहना, बताया नहीं!
Step 16: Conclusion
अरे, रेलवे के इन स्पेशल कोटा को देखो ना सिर्फ नियम नहीं, ये तो जैसे सफर का जुगाड़ है! महिलाओं के लिए टेंशन-फ्री सीट, सीनियर सिटिज़न्स के लिए रॉयल ट्रीटमेंट और दिव्यांग यात्रियों को भी पूरा ख्याल। ये कोटा न हो, तो सफर का मज़ा आधा रह जाए, सच में।
महिला कोटा है, तो महिलाओं के लिए एक्स्ट्रा सिक्योरिटी और कंफर्ट। सीनियर सिटिज़न्स के लिए सीट फिक्स वरना इतनी भीड़ में सुकून से बैठना भी सपना बन जाता। दिव्यांग यात्रियों को एक्स्ट्रा अटेंशन, जैसे रेलवे कह रही हो “आपकी केयर हमारी जिम्मेदारी!”
तो अगली बार ट्रेन में चढ़ो, बिना इन कोटा ऑप्शन पर नजर मारे मत रहना। सीट पक्की, सफर मस्त और हां, इंस्टा पर एक सेल्फी डालना मत भूलना, #IndianRailwayStyle!
FAQs
भारतीय रेलवे में महिला कोटा क्या है?
देखो, रेलवे में औरतों के लिए थोड़ा ‘वीआईपी ट्रीटमेंट’ है मतलब, महिला कोटा के नाम पर कुछ सीटें सिर्फ़ महिलाओं के लिए रिज़र्व रहती हैं। ये कोई दिखावे वाली सुविधा नहीं है, बल्कि भीड़-भाड़, धक्का-मुक्की और ‘आंटी जी, जरा खिसकिए’ वाले झंझट से बचने के लिए है। खास तौर पर स्लीपर और जनरल क्लास में ये सीटें मिलती हैं। सेफ्टी और कम्फर्ट दोनों का जुगाड़। वैसे, रात की ट्रेन पकड़नी हो, तो ये कोटा किसी वरदान से कम नहीं।
मैं महिला कोटा के तहत टिकट कैसे बुक कर सकती हूं?
सीधा सा तरीका है, लेकिन लोग फिर भी कन्फ्यूज हो जाते हैं। IRCTC की वेबसाइट खोलो या ऐप इस्तेमाल करो जो भी मोबाइल में कम जगह ले रहा हो। ट्रेन, तारीख, स्टेशन सब सिलेक्ट करो, फिर सीट सिलेक्शन में ‘लेडीज कोटा’ ढूंढो। सही ऑप्शन टिक करो, डिटेल्स भरो, और पेमेंट कर दो झंझट खत्म। वैसे, अगर कभी गलती से महिला कोटा के अलावा कुछ टिक कर दिया, तो फिर वही पुराना धक्का-मुक्की वाला खेल शुरू। तो ध्यान से!
वरिष्ठ नागरिक कोटा क्या है और इसके लिए कौन पात्र है?
अब बात आती है हमारे दादी-नानी, दादा-नाना की यानी सीनियर सिटिज़न कोटा। 60 साल से ऊपर की महिलाएँ, 65 साल से ऊपर के पुरुष ये लोग इसके लिए एलिजिबल हैं। फायदा? कन्फर्म सीट की प्रायोरिटी, किराए में छूट, और बुकिंग में लाइन नहीं लगानी पड़ती। वैसे, आजकल सीनियर सिटिज़न भी स्मार्टफोन पर बुकिंग कर लेते हैं तो बच्चों, अपनी मम्मी-पापा की मदद कर देना!
दिव्यांग कोटा कैसे काम करता है?
ये वाला कोटा उन लोगों के लिए, जिनके लिए सफर करना थोड़ा मुश्किल है। रेलवे ने न सिर्फ़ सीटें रिज़र्व की हैं, बल्कि व्हीलचेयर, रैंप, और कभी-कभी तो पूरा स्पेशल कोच भी। बुकिंग के टाइम ‘दिव्यांग कोटा’ सिलेक्ट करो और सरकारी डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट अपलोड कर दो। कोई जुगाड़-वुगाड़ नहीं चलेगा डॉक्युमेंट ऑथेंटिक होना चाहिए। असली ज़रूरतमंदों के लिए है, फर्जी वालों के लिए नहीं।
क्या सभी ट्रेनों और श्रेणियों में कोटा सीटें उपलब्ध हैं?
हर ट्रेन में नहीं, हर क्लास में भी नहीं ये कोई ऑल-इन-वन ऑफर नहीं है। राजधानी, शताब्दी, लोकल सबकी अपनी-अपनी पॉलिसी है। स्लीपर, एसी, जनरल हर क्लास में सीटें अलग-अलग होती हैं। और रूट भी मायने रखता है दिल्ली-मुंबई जैसी भीड़ वाली लाइन में कोटा जल्दी भर जाता है, वहीं किसी गुमनाम से रूट पर शायद सीटें खाली मिल जाएँ। किस्मत आज़माओ, हर बार जैकपॉट नहीं लगेगा।
क्या पुरुष यात्री महिला कोटे के तहत टिकट बुक कर सकते हैं?
सीधा जवाब बिल्कुल नहीं! महिला कोटा का मतलब ही यही है कि सिर्फ़ महिलाओं के लिए। कोई भाई साहब गलती से भी ये ट्राय मत करना, नहीं तो रिजेक्ट हो जाएगा। वैसे, अगर किसी का नाम ‘रिंकू’ है तो भी रेलवे आईडी देख लेती है तो चालाकी काम नहीं आएगी।
वरिष्ठ नागरिक या दिव्यांग कोटा बुकिंग के लिए कौन से दस्तावेज़ आवश्यक हैं?
सीनियर सिटिज़न कोई सरकारी आईडी जिसमें उम्र साफ-साफ लिखी हो (आधार, पासपोर्ट, वोटर आईडी जो भी पास में हो)। दिव्यांग कोटा सिर्फ़ गवर्नमेंट अप्रूव्ड डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट चलेगा। और हाँ, टिकट बुकिंग के टाइम ही डॉक्युमेंट अपलोड करो बाद में मत कहना कि “अरे, अब क्या करें?”
कोटा सीटें जल्दी क्यों भर जाती हैं?
सीटें तो लिमिटेड हैं, लेकिन डिमांड पूछो मत! त्यौहार हो या छुट्टियाँ, लोग बुकिंग खुलते ही टूट पड़ते हैं। सरकार ने महिलाओं, सीनियर सिटिज़न, और दिव्यांग यात्रियों को प्रायोरिटी दी है तो बाकी जनता को लाइन में लगना ही पड़ेगा। इसीलिए, जो जल्दी जागता है वही सीट पाता है वरना ‘नॉट अवेलेबल’ के बोर्ड देखना तय है।
क्या मैं बाद में अपनी बुकिंग को कोटा सीट में बदल सकता हूँ?
नहीं, भाई! जो करना है बुकिंग के टाइम ही कर लो। बाद में कोटा सीट का ऑप्शन नहीं मिलता। सोच-समझ कर बुकिंग करो, वरना फिर ‘नॉर्मल’ वाली लाइन में जाओ और फिंगर क्रॉस कर के बैठो।
यदि मेरा कोटा टिकट “प्रतीक्षा सूची में” दिखाता है तो क्या होगा?
अगर आपकी कोटा टिकट वेटिंग में है, तो सच्ची बात कन्फर्म होने की उम्मीद बहुत कम है। दूसरा ऑप्शन देखो, या बाकी किसी कोटे में ट्राय करो। जनरल टिकट भी बुक कर सकते हो, किस्मत चमकी तो सीट मिल जाएगी वरना ‘डब्बे में खड़े-खड़े’ का एक्सपीरियंस भी जरूरी है लाइफ है, सब चलता है!