Pomodoro vs Timeboxing vs Flowtime: Which Focus Method Fits You?
Choosing the right focus method can boost your productivity and reduce stress. Three popular approaches are Pomodoro, Timeboxing, and Flowtime. Each has its own way of helping you stay on task and manage your time better. This post will compare these methods so you can find the one that fits your work style best.
Pomodoro vs. Timeboxing vs. Flowtime: Which Focus Method Fits You?
अब ज़िंदगी की भागदौड़ में अगर Pomodoro vs Timeboxing vs Flowtime का जादू चाहिए, तो बस वही घिसे-पिटे तरीके छोड़ो असली गेम है सही फोकस वाली ट्रिक ढूंढना। चाहे बोर्ड की तैयारी में उलझे हो या लैपटॉप के सामने डेडलाइन से कुश्ती लड़ रहे हो, टाइम मैनेजमेंट की सही चाबी मिल गई तो दिन की हलचल भी मज़ेदार मैराथन बन जाती है।
अब तीन धांसू खिलाड़ी हैं पोमोडोरो, टाइमबॉक्सिंग, और फ्लोटाइम। तीनों का अपना स्टाइल है, जैसे बॉलीवुड में अलग-अलग हीरो। कोई फास्ट एंड फ्यूरियस, कोई कूल एंड कैज़ुअल। इस आर्टिकल में हम करेंगे इनका फंक्शन टेस्ट कौन-सी टिकनीक है असली बाज़ीगर, किसमें है थोड़ा झोल, और आखिर में कौन-सी आपके काम करने वाले अवतार को सूट करती है।
फैसला मुश्किल लग रहा? चिल करो! एक मज़ेदार क्विज़ भी है सीधा जवाब, सीधी सिफारिश। और हां, टाइमर का लिंक भी मिलेगा, ताकि आज से ही अपना प्रोडक्टिविटी गेम ऑन कर सको। Ready? चलो, प्रोडक्टिविटी के मैदान में कुछ नया ट्राय करते हैं!
Pomodoro vs Timeboxing vs Flowtime
Introduction: Why Focus Techniques Matter
कभी-कभी तो लगता है जैसे टाइम खुद ही छलांग मारकर आगे बढ़ जाता है, है ना? काम शुरू किया, और पलक झपकते पता चला अरे, तीन घंटे निकल गए! या फिर, इतना डूब गए कि ब्रेक का नाम ही भूल गए? अरे भाई, ये सब होता है जब फोकस का कोई प्लान ही नहीं होता। ‘पोमोडोरो’, ‘टाइमबॉक्सिंग’, ‘फ्लोटाइम’ नाम जितने स्टाइलिश हैं, काम उतना ही सिंपल: अपने दिन को ऐसे टुकड़ों में काटो कि दिमाग को आराम भी मिले और काम भी पूरा हो।
सीधा फंडा ये है काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटो, एनर्जी के हिसाब से टाइम चुनो, और देखना टालमटोल, मल्टीटास्किंग सब हवा हो जाएगा!
रिसर्च भी चिल्ला-चिल्ला कर कहती है अगर बिना डिस्टर्बेंस के ‘फ्लो’ जोन में घुस गए, तो प्रोडक्टिविटी पांच गुना तक बढ़ सकती है। सोचो ज़रा, पांच गुना! मतलब, सही तरीका पकड़ लिया तो काम में रॉकेट लग जाएगा। अब चलो, इन तरीकों की दुनिया में थोड़ा तफरीह करते हैं!
What Is the Pomodoro Technique?
चलो, आज दिमागी जिम की बात करते हैं वो भी टाइमर के साथ! पोमोडोरो तकनीक का नाम सुना है? अगर नहीं, तो अब सुन लो, क्योंकि ये चीज़ किसी भी आलसी या डेडलाइन से जूझ रहे इंसान के काम की है। थोड़ा क्रिएटिव होकर समझते हैं कि ये आखिर है क्या, और क्यों इतना फेमस है।
1. पोमोडोरो क्या बला है?
- आसान भाषा में:
25 मिनट तक काम पूरा ध्यान, बिना फेसबुक-इंस्टा की चैकिंग, बिना वाट्सऐप की टन-टन।
फिर आता है 5 मिनट का कूल ब्रेक पानी पीओ, स्ट्रेच करो, या बस छत ताको। - नाम की कहानी:
“पोमोडोरो” दरअसल इटली में टमाटर को कहते हैं। सिरिलो नाम के एक बंदे ने अपने टमाटर-शेप वाले किचन टाइमर से ये सिस्टम निकाला जुगाड़ बड़ा काम का निकला। - मूल मंत्र:
बड़े-बड़े काम छोटे हिस्सों में काट दो, हर हिस्से के बाद छोटा ब्रेक लो, ताकि दिमाग न पक जाए।
2. कैसे लागू करें? (Step By Step)
- टू-डू लिस्ट बनाओ:
सबसे पहले, जो भी करना है सबकी लिस्ट बना लो। - टाइमर सेट करो:
25 मिनट का टाइमर लगाओ। - फुल फोकस मोड:
जब तक टाइमर बज न जाए, कुछ भी और मत देखो न फोन, न ईमेल। - ब्रेक टाइम:
टाइमर बजा? 5 मिनट की छुट्टी! चाहो तो नाश्ता बना लो, चाहो तो म्यूजिक सुन लो। - फिर से दोहराओ:
ये चार बार करो। चौथे के बाद, खुद को बोनस ब्रेक दो 15 से 30 मिनट का। - Repeat Till You Drop (या Target मिल जाए):
जब तक काम खत्म, ये चक्र चलता रहे।
3. पोमोडोरो के सुपरपावर (Benefits)
- ब्रेन का इंटरवल ट्रेनिंग:
दिमाग भी जिम करता है छोटे-छोटे स्प्रिंट्स में। इससे थकावट कम, एनर्जी ज्यादा। - बोरिंग काम भी doable:
सोचो, सामने सिर्फ 25 मिनट का पहाड़ है एवरेस्ट नहीं, अरे हां, चढ़ ही जाएंगे! - प्रोक्रास्टिनेशन को झटका:
“यार, 25 मिनट ही तो हैं, कर ही लेते हैं” बड़ा काम छोटे हिस्से में manageable लगने लगता है। - सिंगल टास्किंग की आदत:
हर बार नया काम नहीं एक बार में एक काम। इससे डिस्टर्ब नहीं होते, फोकस बना रहता है। - छोटा ब्रेक = मोटिवेशन:
सामने ब्रेक दिखता है, तो मन करता है जल्दी से काम निपटाओ, फिर आराम से ब्रेक लो।
4. थोड़ी कड़वी बातें (Drawbacks)
- हर किसी के लिए नहीं:
कुछ लोगों को 25 मिनट में हाथ खुलते हैं, तब तक टाइमर बज जाता है पूरा फ्लो टूट जाता है। - ऑफिस की रुकावटें:
बॉस बुला ले, ईमेल आ जाए, फोन बजे चक्र टूट गया, फिर से शुरू करना पड़ेगा। - कभी टाइम बहुत कम, कभी बहुत ज्यादा:
coding या creative काम में 25 मिनट कम पड़ सकते हैं, और boring data entry में ये बहुत लंबा लग सकता है। - रूटीन से बंधे रहना:
हर बार घड़ी देखकर चलना सबको पसंद नहीं कुछ लोग तो बस अपने मूड से चलते हैं।
5. थोड़ा क्रिएटिव ट्विस्ट: अपने हिसाब से ढालो
- टाइम इंटरवल्स बदलो:
25/5 फिक्स नहीं है चाहो तो 40/10 कर लो, या 15/3, जो भी तुम्हारे दिमाग को फिट बैठे। - ब्रेक्स में कुछ फायदेमंद करो:
स्ट्रेचिंग, मेडिटेशन, या घर की बालकनी में ताज़ा हवा ब्रेक्स सिर्फ टाइम पास नहीं, माइंडफ्रेशर बन सकते हैं। - ग्रुप पोमोडोरो:
दोस्तों के साथ मिलकर करो सबका टाइमर एक साथ सेट, फिर देखो प्रोडक्टिविटी का धमाल। - ऐप्स और गैजेट्स:
आजकल पोमोडोरो के लिए हज़ारों ऐप्स हैं फोन या लैपटॉप में सेट कर लो, किचन टाइमर की जरूरत नहीं।
सीधा सा फंडा है जो काम करे, वही सही। अगर तुम्हें बढ़िया टाइम मैनेजमेंट चाहिए, छोटा-छोटा ब्रेक चाहिए, और फोकस की कमी है पोमोडोरो ट्राई करके देखो। नहीं जमा तो कोई बात नहीं, अपनी स्टाइल में काम करो। वैसे भी, हर किसी की प्रोडक्टिविटी की कुंजी अलग होती है, है कि नहीं?
What Is Timeboxing?
चलो, बेसिक से शुरू करते हैं। टाइमबॉक्सिंग का मतलब? भाई, हर टास्क के लिए एक फिक्स टाइम स्लॉट बुक कर लो जैसे डॉक्टर के पास अपॉइंटमेंट बुक करते हो, बस। पोमोडोरो वाले टाइमर से थोड़ा अलग गेम है ये। इसकी जड़ें तो सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट में थीं (जेम्स मार्टिन का नाम याद रखो), पर आजकल हर बंदा, हर फील्ड में ट्राय कर रहा है।
टाइमबॉक्सिंग का असली खेल कैसे काम करता है?
सीधा फॉर्मूला:
- टास्क चुनो: मान लो कोई रिपोर्ट लिखनी है या ईमेल्स का जवाब देना है।
- टाइम सेट करो: रिपोर्ट रिसर्च 45 मिनट, ईमेल 30 मिनट, वगैरह।
- टाइमर ऑन करो: अलार्म बजते ही काम शुरू।
- टाइम खत्म? बस, हाथ खींच लो: चाहे काम पूरा हो या अधूरा, आगे नहीं बढ़ना।
कुछ काम छूट गया? कोई बात नहीं, उसे अगले टाइमबॉक्स में डाल दो। टाइमबॉक्सिंग का असली मजा यही है कि फालतू टाइम बर्बाद नहीं होता और दिमाग में हमेशा क्लियरिटी रहती है कि कब क्या करना है।
टाइमबॉक्सिंग vs. टाइम ब्लॉकिंग कौन सा किस्म ज्यादा कड़क?
लोग अक्सर दोनों को मिक्स कर देते हैं। पर फर्क है, भाई!
टाइमबॉक्सिंग | टाइम ब्लॉकिंग | |
---|---|---|
टाइमर चलता है? | हां, सख्त टाइमर | नहीं, थोड़ा लचीलापन |
ओवररन कर सकते हो? | नहीं, टाइम खत्म तो काम बंद | हां, जरूरत पड़ी तो टाइम बढ़ा लो |
फोकस कैसे? | पूरा ध्यान एक टास्क, मल्टीटास्किंग की छुट्टी | कभी-कभी स्लिप हो सकता है फोकस |
मीटिंग जैसा? | बिलकुल, टाइम खत्म तो मीटिंग खत्म | मीटिंग डगमगा सकती है |
सोचो, टाइमबॉक्सिंग वैसा ही है जैसे किसी सख्त बॉस के साथ मीटिंग टाइम खत्म, तो आगे बढ़ जाओ, चाहे प्रेजेंटेशन अधूरी रह जाए!
टाइमबॉक्सिंग के फायदे क्यों ट्राय करना चाहिए?
- परफेक्शनिज्म को लगाओ लात: हमेशा “थोड़ा और, थोड़ा और” बोलने की आदत खत्म।
- सिंगल टास्किंग का असली मजा: एक टाइमबॉक्स = एक टास्क, मल्टीटास्किंग की छुट्टी।
- टाइम की वैल्यू समझो: हर टास्क को उतना ही वक्त मिलता है, जितना असल में चाहिए।
- ब्रेक्स मिस नहीं होंगे: जैसे किचन में टाइमर बजता है, वैसे ही यहां भी अलर्ट मिल जाता है।
- मैनेजर्स और प्लानर्स के लिए जन्नत: पूरा दिन शेड्यूल में समा जाता है, कोई भी टास्क बाहर नहीं रह जाता।
- फोकस्ड प्रोडक्टिविटी: ईमानदारी से कहूं, जब तक टाइमर चलता है, फालतू नोटिफिकेशन, व्हाट्सएप, इंस्टा सब गायब!
कमियाँ हर सिक्के के दो पहलू
अब, ये मत समझना कि टाइमबॉक्सिंग में सब कुछ गुलाबी है।
- टाइम का सही अंदाजा लगाना मुश्किल: कभी अंडरएस्टीमेट किया तो पैनिक, ओवरएस्टीमेट किया तो बोरियत।
- ब्रेक्स का झंझट: पोमोडोरो स्टाइल छोटे ब्रेक्स नहीं मिलते, जब तक खुद सेट न करो।
- चार्जिंग बुल की तरह सख्त: अचानक कोई जरूरी मीटिंग आ गई, तो पूरा सिस्टम गड़बड़ा सकता है।
- नवसिखियों का सिरदर्द: शुरू में टाइम का सही अंदाजा लगाना मुश्किल लगेगा, ट्रायल-एंड-एरर का खेल चलेगा।
- कभी-कभी फ्लेक्सिबिलिटी मिसिंग: कूल होना है तो ये तरीका थोड़ा स्ट्रिक्ट लग सकता है, सबको सूट नहीं करता।
कुछ एक्स्ट्रा टिप्स टाइमबॉक्सिंग मास्टर कैसे बनो?
- शुरुआत में छोटे टाइमबॉक्स रखो: बड़ा जंप मत मारो, वरना थक जाओगे।
- बीच-बीच में ब्रेक डालना मत भूलो: दिमाग को भी रिचार्ज चाहिए!
- हर हफ्ते एनालाइज करो: कहां टाइम वेस्ट हुआ, क्या काम आया सब नोट करो।
- लचीले रहो: कभी-कभी टाइमबॉक्स फेल हो जाए तो खुद को दोषी मत मानो।
आखिर में टाइमबॉक्सिंग: दोस्त या दुश्मन?
सीधा जवाब दोनों हो सकता है! सही तरीके से इस्तेमाल किया तो टाइमबॉक्सिंग बन जाएगा प्रोडक्टिविटी का सुपरपावर। वरना बस घड़ी देखकर टेंशन लेनी पड़ेगी। एक बार ट्राय तो मारो, शायद टाइम का बॉस बन ही जाओ!
What Is the Flowtime Technique?
1. फ्लोटाइम vs पोमोडोरो: कौन कितने पानी में?
- पोमोडोरो – आपको स्कूल की घंटी की तरह हर 25 मिनट बाद “अब ब्रेक ले!” कहता है।
- फ्लोटाइम – भाई, ये तो “दिमाग बोले तभी ब्रेक लो” वाला सिस्टम है।
- फर्क बिल्कुल वैसा है जैसे किसी को ट्रैक पर दौड़ना पसंद है, किसी को समुंदर में तैरना।
- ज़ो रीड-बिवेन्स – जिनके दिमाग में ये खुराफात आई सीधा-सीधा कहती हैं, “मैं घड़ी की गुलाम नहीं हूं, अपने फ्लो की सुनूंगी।”
2. फ्लोटाइम का जादू: फ्लो स्टेट क्या बला है?
- कभी ऐसा हुआ है कि आप कुछ कर रहे हो और टाइम पता ही नहीं चलता? बस उसी मूड को ‘फ्लो’ बोलते हैं।
- साइकोलॉजिस्ट्स भी मानते हैं, जब इंसान पूरी तरह लीन हो जाता है तो क्रिएटिविटी का असली धमाका वहीं होता है।
- फ्लोटाइम इसी फ्लो को पकड़ने की कोशिश है कोई जबरदस्ती का ब्रेक नहीं, कोई घड़ी का डर नहीं।
- टाइमर बंद, दिमाग ऑन बस जितना मन करे, उतना काम करो।
3. कैसे करें फ्लोटाइम का इस्तेमाल? (Step-by-Step, कोई झंझट नहीं!)
- काम चुनो: कोई भी टास्क, जो फोकस माँगे।
- टाइम नोट करो: कब शुरू कर रहे हो, बस लिख लो (कोई रॉकेट साइंस नहीं)।
- डूब जाओ: काम में लग जाओ, जब तक फील अच्छा है।
- ब्रेक लो: जब लगे कि अब दिमाग थक गया या पेट में चूहे दौड़ रहे हैं रुक जाओ।
- ब्रेक भी अपनी मर्जी से: छोटा या बड़ा जैसा मूड हो।
- फिर से लग जाओ: चाहो तो वही टास्क, चाहो तो नया कोई बंधन नहीं।
4. किसके लिए है फ्लोटाइम? (किंग कौन?)
- क्रिएटिव प्रोफेशन:
- राइटर, कोडर, डिजाइनर जिनका काम लंबा और गहरा फोकस चाहता है।
- फ्री स्पिरिट्स:
- जिन्हें बार-बार अलार्म वाली सख्ती से चिढ़ है।
- मूड के मस्ताने:
- जिनका एनर्जी लेवल रोज़ बदलता रहता है कभी रात का उल्लू, कभी सुबह का मोर।
- टाइम ट्रैवलर:
- जो काम में डूबते ही टाइम भूल जाते हैं (और अलार्म बजता है तो चौंक जाते हैं)।
5. फ्लोटाइम के फायदे: फ्रीडम का फुल डोज
- लचीलापन:
- 25 मिनट हो गए? कौन पूछ रहा है! जब तक मन करे, काम करो।
- गिल्ट-फ्री ब्रेक:
- थक गए तो छोटे सेशन में भी कोई बुरा नहीं मानेगा।
- फ्लो का जादू:
- रिसर्च कहती है, इस स्टेट में आउटपुट बूस्ट हो जाता है।
- कम स्ट्रेस:
- बार-बार ब्रेक लेने और फिर से काम पर लौटने का टेंशन कम।
- अपना फोकस टाइम बढ़ाओ:
- धीरे-धीरे फोकस टाइम खुद-ब-खुद बढ़ता है, जब आप नोटिस करने लगते हैं कि आप कितनी देर तक लगे रह सकते हैं।
6. कमियां और खतरे: ये न समझना कि सब मस्त है
- सेल्फ-कंट्रोल चाहिए:
- कोई बाहर से नहीं बोलेगा कि “अब ब्रेक लो” खुद पर भरोसा चाहिए।
- ओवरवर्क का खतरा:
- इतना डूब सकते हो कि ब्रेक लेना भूल जाओ फिर बर्नआउट पक्का।
- ट्रैकिंग की टेंशन:
- अगर टाइम नोट नहीं किया तो पता ही नहीं चलेगा कि कितना वक्त क्या कर रहे थे।
- कुछ लोगों के लिए फिट नहीं:
- जिनको ब्रेक की आदत नहीं, वो बिना रुके थक जाएंगे या बोर हो जाएंगे।
7. कुछ होशियारी के टिप्स: फ्लोटाइम को फेल मत होने दो
- ब्रेक याद रखने के लिए अलार्म नहीं तो कम से कम रिमाइंडर तो लगा लो।
- काम शुरू और खत्म करने का टाइम जरूर लिखो वरना बाद में पछताओगे।
- अगर खुद पर भरोसा नहीं है, तो कोई हल्का-फुल्का ऐप यूज़ कर लो।
- ब्रेक के वक्त सच में ब्रेक लो मोबाइल पर भी काम मत करो, वरना दिमाग को आराम नहीं मिलेगा।
8. आखिर में: फ्लोटाइम काम का फ्री-स्टाइल
फ्लोटाइम बस एक तरीका है जिसमें आप काम को अपने हिसाब से हैंडल करते हो, जैसे कोई DJ अपने मूड के हिसाब से म्यूज़िक प्ले करता है। कोई रूल बुक नहीं, कोई बंधन नहीं बस अपने फोकस की लहर पर सवारी।
हाँ, खुद पर भरोसा और थोड़ा सा ईमानदारी चाहिए वरना आप भीड़ में खो जाओगे।
तो अगली बार जब कोई बोले, “25 मिनट हो गए, ब्रेक ले लो” तो मुस्कुरा के कह देना, “भाई, मैं फ्लोटाइम पर हूं!”
Comparing the Techniques
1. संरचना बनाम लचीलापन: कौन कितना सख्त है?
पोमोडोरो:
- Imagine वो दोस्त जो हर पार्टी में टाइम देखकर ही खाना खाता है।
- 25 मिनट की सख्त स्प्रिंट, फिर छोटी-सी ब्रेक, फिर वही दोहराव कोई भावनाएँ नहीं, बस नियम!
- Perfect अगर तुम्हें रूटीन चाहिए और हर चीज़ पर पकड़ रखना अच्छा लगता है।
टाइमबॉक्सिंग:
- थोड़ा Chill, थोड़ा Strict।
- तुम खुद तय करते हो किस काम को कितनी देर देना है?
- एक बार टाइम फिक्स कर लिया, तो फिर उसी में रहना होगा No last minute drama!
- Those who like planning but hate feeling trapped, this is your jam.
फ़्लोटाइम:
- ये है तुम्हारा “Go with the Flow” वाला दोस्त।
- न टाइम की टेंशन, न ब्रेक का झंझट जब तक मन करे काम करो, थक गए तो आराम करो।
- अगर मूड स्विंग्स और क्रिएटिव ब्लॉक्स से प्यार है, तो यही Best Friend है।
2. काम की किस्म: कौन-सी ट्रिक किसके लिए?
पोमोडोरो:
- छोटे-छोटे टुकड़ों में बँटने वाले काम (जैसे रिपोर्ट लिखना, नोट्स बनाना)।
- हर सेक्शन अलग, हर टास्क का अपना टाइम सिस्टमेटिक और सटीक।
- Example: 25 मिनट में एक चैप्टर पढ़ा, ब्रेक, फिर अगला चैप्टर।
टाइमबॉक्सिंग:
- जब हर टास्क की डेडलाइन अलग होनी चाहिए।
- ईमेल 30 मिनट, Excel 45 मिनट, मीटिंग्स के लिए अलग स्लॉट जैसे एक DJ अपने गाने सेट करता है।
- Best for लोग जिनके दिन में हर काम की अपनी मर्जी है।
फ़्लोटाइम:
- क्रिएटिव या जटिल काम, जहाँ टाइम बांधना नामुमकिन।
- ब्लॉग लिखना, कोड की उलझी हुई प्रॉब्लम सुलझाना, या कोई आइडिया पर काम करना।
- जहाँ “Flow” में घुसना है और रुकावटें पसंद नहीं।
3. ब्रेक का मामला: कौन कितना मेहरबान?
पोमोडोरो:
- ब्रेक मिस करना? लगभग गुनाह!
- हर 25 मिनट बाद छुट्टी ताकि दिमाग फ्रेश रहे।
- Brain की जिम ट्रेनिंग समझो।
टाइमबॉक्सिंग:
- ब्रेक का कोई ऑटो-पायलट नहीं।
- खुद सोचना पड़ेगा कब रुकना है, कब फिर से शुरू करना है।
- Planning lovers, keep your alarms ready!
फ़्लोटाइम:
- देसी अंदाज में जब थक जाओ, रुको।
- ब्रेक पूरी तरह तुम्हारे मूड पर निर्भर।
- कोई रोक-टोक नहीं, बस अपनी बॉडी और माइंड की सुनो।
4. मल्टीटास्किंग? भूल जाओ!
- तीनों ही कहते हैं “भैया, एक समय में एक ही काम करो।”
- मल्टीटास्किंग की जगह नहीं ये सब फोकस के फैन हैं।
- एक काम पकड़ो, उसमें घुस जाओ बिना इधर-उधर भटकने के।
5. अनुकूलनशीलता: किसमें कितनी Flexibility?
पोमोडोरो:
- 25 मिनट का फिक्स पैकेज, कोई मोलभाव नहीं।
- Discipline lovers के लिए।
टाइमबॉक्सिंग:
- हर टास्क के लिए अपनी टाइम लिमिट लेकिन एक बार सेट हो गई तो फिर वही चलेगा।
- Midway में बदलाव नहीं करना तो बेहतर।
फ़्लोटाइम:
- कितनी देर काम? कब ब्रेक? सब कुछ तुम्हारी एनर्जी और मूड पर।
- Maximum Freedom कोई फिक्स्ड रूल्स नहीं।
कुछ Extra Insights—Reality चेक!
- मिक्स-एंड-मैच: Honestly, ज़िंदगी कोई बोर्ड एग्जाम नहीं। Mood के हिसाब से कभी पोमोडोरो, कभी फ़्लोटाइम खुद पर एक्सपेरिमेंट करो।
- Discipline vs Creativity: अगर दिनभर दिमाग बिखरा रहता है, तो पोमोडोरो ट्राई करो। लेकिन अगर आइडिया की रौ में बहना है, तो फ़्लोटाइम बेस्ट है।
- Pro-Tip: टाइमबॉक्सिंग में अलार्म लगाना मत भूलना, वरना काम में गुम हो जाओगे।
- Fun Fact: Steve Jobs ने भी कभी-कभी टाइम को फिक्स करने की बजाय “Flow” का फॉर्मूला अपनाया था तो तुम क्यों नहीं?
हर किसी का काम करने का स्टाइल अलग होता है कोई डिसिप्लिन चाहता है, कोई फ्रीडम।
इन तीनों में से जो तुम्हारे टेम्परामेंट और काम की डिमांड से मेल खाए, वही ट्रिक अपनाओ।
और हाँ, अपनी गलती से सीखना मत भूलना क्योंकि यही असली Productivity Hack है!
टाइम मैनेजमेंट के तीन महारथी: पोमोडोरो, टाइमबॉक्सिंग, और फ्लोटाइम
1. पोमोडोरो बनाम टाइमबॉक्सिंग
क्या है झगड़ा?
- पोमोडोरो:
- 25 मिनट तक काम करो, फिर 5 मिनट की छुट्टी ऐसा चार बार, फिर एक लंबा ब्रेक।
- हर चक्कर छोटे-छोटे स्प्रिंट की तरह है।
- जैसे मोबाइल में गेम खेलकर बार-बार पॉज लेना, ताकि दिमाग फ्रेश रहे।
- टाइमबॉक्सिंग:
- टोटल फ्रीडम! एक काम को 45 मिनट, दूसरे को 30 मिनट जैसा मन करे, वैसा टाइम सेट कर लो।
- पूरा दिन अपने हिसाब से कैलेंडर में प्लान करो, जैसे खुद को बॉस समझकर मीटिंग बुक कर रहे हो।
यूज़र एक्सपीरियंस का फंडा:
- पोमोडोरो उन लोगों के लिए बढ़िया है, जिन्हें टाइम के साथ रेस लगाने में मजा आता है।
- टाइमबॉक्सिंग उनके लिए जादू है, जिन्हें सब कुछ पहले से प्लान करना पसंद है कोई सरप्राइज़ नहीं चाहिए।
कब, कौन-सा?
- पोमोडोरो:
- बड़ी चीज़ों को छोटे टुकड़ों में काटना हो।
- काम या तो बोरिंग हो, या बहुत भारी लगे।
- बार-बार मोटिवेशन और ब्रेक चाहिए।
- टाइमबॉक्सिंग:
- जब हर टास्क की वैल्यू अलग हो।
- मल्टीटास्किंग करनी हो, या हर काम को उसका ड्यू टाइम देना हो।
- प्लानिंग में तगड़ी पकड़ चाहिए कोई भी टाइम वेस्ट नहीं।
2. पोमोडोरो बनाम फ्लोटाइम
ब्रेक का खेल—कौन कितना लचीला?
- पोमोडोरो:
- टाइमर जैसे तानाशाह 25 मिनट बाद अलार्म बजा, चाहो या न चाहो, ब्रेक लेना ही पड़ेगा।
- फ्लो में हो, फिर भी कट जाएगा।
- बढ़िया है अगर तुम्हें खुद पर कंट्रोल नहीं रहता।
- फ्लोटाइम:
- पूरी मस्ती! जब तक मन करे, तब तक काम करो ब्रेक लेने का मन किया तो ही ब्रेक।
- कभी-कभी पता ही नहीं चलता, कब दो घंटे बीत गए।
- खतरनाक भी है—ब्रेक लेना भूल सकते हो!
मनोवैज्ञानिक असर:
- पोमोडोरो का उल्टा काउंटडाउन कई लोगों को मोटिवेट करता है जैसे रेस चल रही हो।
- फ्लोटाइम बिना घड़ी देखे “जोन” में घुस जाने वालों के लिए है फोकस का असली मजा।
किसके लिए क्या?
- पोमोडोरो:
- जब काम मध्यम हो, और बार-बार दिमाग को रिफ्रेश करना हो।
- डिसिप्लिन चाहिए।
- फ्लोटाइम:
- जटिल या क्रिएटिव काम जैसे आर्ट, कोडिंग, राइटिंग।
- लय में रहना है, और किसी की रोक-टोक पसंद नहीं।
3. टाइमबॉक्सिंग बनाम फ्लोटाइम
योजना बनाम फीलिंग किसकी चलेगी?
- टाइमबॉक्सिंग:
- हर टास्क का टाइम पहले से फिक्स जैसे सुबह 9 से 10 ये करना है, 10 से 11 वो।
- दिन का नक्शा तैयार, कोई सरप्राइज़ नहीं।
- अचानक ब्रेक या बदलाव मुश्किल।
- फ्लोटाइम:
- कोई प्लानिंग नहीं काम शुरू, जब तक एनर्जी है, चलते रहो।
- ब्रेक कब लेना है, खुद तय करो।
- रुकावट या मूड का कोई झंझट नहीं सब एनर्जी पर चलता है।
लचीलापन—कितना जरूरी?
- फ्लोटाइम सुपर लचीला ऊर्जा है तो काम बढ़ाओ, थकान है तो ब्रेक ले लो।
- टाइमबॉक्सिंग में टाइम एक बार फिक्स हो गया तो फिर उसमें चेंज मुश्किल।
- अगर अचानक कुछ आ गया, फ्लोटाइम तुरंत रिएक्ट कर सकता है, टाइमबॉक्सिंग में थोड़ा पसीना आ सकता है।
प्रोजेक्ट्स के लिए कौन?
- टाइमबॉक्सिंग:
- बड़े प्रोजेक्ट्स जैसे प्रेजेंटेशन, ग्रुप वर्क, या मैराथन मीटिंग्स।
- कैलेंडर में सब कुछ ठोक-पीट के फिक्स कर सकते हो।
- फ्लोटाइम:
- कोई भी काम, खासकर लंबा, गहरा, या क्रिएटिव जैसे रात-भर कोडिंग, या पेंटिंग।
- फुल कण्ट्रोल जब तक लय है, तब तक चलते रहो।
छोटा सा निष्कर्ष (या कहो ‘गाइड’):
- डिसिप्लिन चाहिए? — पोमोडोरो ट्राय कर।
- प्लानिंग के दीवाने हो? — टाइमबॉक्सिंग अपनाओ।
- फ्रीडम और फ्लो पसंद है? — फ्लोटाइम में डूब जा।
सच कहूं तो, हर किसी के लिए एक ही तरीका नहीं चलता। मूड, काम, और कभी-कभी बॉस की डिमांड के हिसाब से बदलना पड़ता है। तो ट्राय करो, गड़बड़ाओ, जो जमे उसी में टिक जाओ। आखिर, टाइम मैनेजमेंट भी एक आर्ट है कोई पक्का फॉर्मूला नहीं, बस अपना तरीका ढूंढो।
Which Focus Method Fits You? (Quiz)
ठीक है, अब बात को थोड़ा और मज़ेदार और आसान बनाते हैं। नीचे हर सेक्शन में आपको मिलेगा साफ-सुथरा हेडिंग, बुलेट पॉइंट्स, और ढेर सारी काम की बातें, ताकि आपका फोकस गेम लेवल अप हो जाए। चलिए, शुरू करते हैं!
1. सबसे पहले आपका काम करने का स्टाइल क्या है?
जैसे हर किसी के पास अपनी चाय की प्याली होती है, वैसे फोकस का तरीका भी सबका अलग!
- A) स्प्रिंट + ब्रेक:
- छोटी-छोटी फोकस दौड़ (जैसे 25 मिनट काम, 5 मिनट ब्रेक)
- काम में जान भी आती है, थकावट भी नहीं होती
- स्ट्रक्चर चाहिए, बस ज़्यादा बंधन नहीं
- B) मूड के साथ तैरना:
- जब तक मन करे, तब तक काम (न कोई टाइमर, न कोई रोक)
- खुद के रिद्म पर भरोसा
- ब्रेक तभी, जब सच में लगे अब बस!
- C) फुल-ऑन शेड्यूल:
- हर टास्क के लिए पहले से टाइम फिक्स
- मिनट-मिनट की प्लानिंग, अलार्म-टाइमर सब रेडी
- बस, सब कुछ कंट्रोल में चाहिए
2. टाइमर और अलार्म दोस्त या दुश्मन?
सच बताओ, अलार्म बजता है तो कैसा लगता है?
- A) टाइमर है दोस्त:
- ब्रेक याद दिलाने में हेल्प करता है
- पोमोडोरो वाले प्यार से बजने दो!
- B) टाइमर है विलेन:
- फोकस में हो तो अलार्म से मूड खराब
- फ्लोटाइम वालों के लिए ‘NO ENTRY’
- C) प्लानिंग के साथ कूल:
- टाइमर-शेड्यूल सब पहले से सेट
- टाइमबॉक्सिंग में टाइमर है ज़रूरी
3. आपका एक परफेक्ट डे कैसा दिखता है?
सपनों का दिन? अरे, फोकस के लिए भी इमैजिनेशन चाहिए!
- A) मोटा-मोटी प्लान, लचीलापन भी:
- टास्क की लिस्ट बना लो
- बीच में बदलाव की छूट रखो
- पोमोडोरो या फ्लोटाइम दोनों में चलेगा
- B) हर काम का टाइम फिक्स:
- कैलेंडर में सब कुछ लिखा हुआ
- कोई टास्क मिस नहीं होगा टाइमबॉक्सिंग FTW!
- C) बस शुरू हो जाओ:
- कोई प्लानिंग नहीं, काम चालू
- मन करे तो रुक जाओ (फ्लोटाइम)
4. क्रिएटिव काम हैंडल कैसे करते हो?
यहां मामला थोड़ा tricky है, क्योंकि क्रिएटिविटी का अपना मिजाज है।
- A) छोटे हिस्से, पोमोडोरो के साथ:
- बड़ा टास्क? छोटा करो और हर हिस्से को टाइम दो
- स्ट्रक्चर में भी क्रिएटिविटी!
- B) ब्लॉक सेट, पर टाइमर नहीं:
- टाइम ब्लॉक बना लो
- पर बीच में घंटी बजाने की ज़रूरत नहीं
- C) बस कूद पड़ो:
- जब तक आइडिया फ्लो करे, चलते रहो
- ब्रेक तभी जब सच में रुकने का मन करे
5. क्विज़ का धमाकेदार नतीजा! (और थोड़ा एक्स्ट्रा मसाला)
अब ज़्यादा सोचो मत, अपने जवाब गिनो और जानो, आपका फोकस वाला ‘सोलमेट’ कौन है:
A. पोमोडोरो लवर
- क्यों सूट करता है?
- टाइम-बाउंड स्प्रिंट्स में आपको एनर्जी मिलती है
- छोटे ब्रेक से माइंड रिफ्रेश
- डिस्ट्रैक्शन से फ्री, एकदम गेम मोड में
- टिप्स:
- 25 मिनट का टास्क, 5 मिनट का ब्रेक यही क्लासिक फॉर्मूला
- ऑनलाइन पोमोडोरो टाइमर ट्राइ करो
- बोर हो जाओ तो, बीच-बीच में टास्क बदलो
B. फ्लोटाइम फैन
- क्यों सूट करता है?
- फ्री-फ्लो में काम करने में मज़ा आता है
- जब तक मन करे, तब तक ‘ऑन फायर’
- ब्रेक तभी जब सच में ज़रूरत हो कोई जबरदस्ती नहीं
- टिप्स:
- ऑनलाइन स्टॉपवॉच पकड़ो, टाइमर का दबाव मत लो
- अगर फोकस टूटे, खुद को गिल्टी फील मत कराओ
- क्रिएटिव टास्क के लिए तो फ्लोटाइम गोल्ड है!
C. टाइमबॉक्सिंग बॉस
- क्यों सूट करता है?
- आपको कंट्रोल चाहिए, सब कुछ शेड्यूल में
- हर टास्क के लिए स्लॉट सेट बिल्कुल कोई सरप्राइज़ नहीं
- अलार्म-टाइमर, कैलेंडर—सब कुछ आपके इशारे पर
- टिप्स:
- अपने कैलेंडर में हर टास्क बुक करो
- इंटरवल टाइमर से खुद को ट्रैक करो
- काम हो या ब्रेक सबका टाइम फिक्स
6. असली खेल: मिक्स एंड मैच!
सुनो, ये क्विज़ कोई सख्त नियम नहीं है।
- एक दिन पोमोडोरो, अगले दिन फ्लोटाइम मूड के हिसाब से
- अलग-अलग टास्क के लिए अलग तरीका जैसे ईमेल के लिए पोमोडोरो, राइटिंग के लिए फ्लोटाइम
- खुद का फॉर्मूला बनाओ, सबका मिक्स कर लो
टेकअवे:
जो भी तरीका आपको बिना थकाए फोकस में रखे वही आपका असली सुपरपावर है। ट्राय करो, खेलो, और खुद को जानो क्योंकि फोकस कोई एक साइज फिट्स ऑल चीज़ तो है नहीं!
एक्स्ट्रा इंसाइट्स (क्योंकि मज़ा डबल करना है!)
- ब्रेक्स को सीरियस लो:
- माइंड को रेस्ट मिलना भी जरूरी है, वरना दिमाग ‘404 एरर’ दिखाने लगेगा!
- फोकस टेक्नोलॉजी:
- ऐप्स, टाइमर, कैलेंडर स्मार्टफोन को अपना दुश्मन मत बनाओ, दोस्त बना लो
- फेल मत फील करो:
- कभी-कभी फोकस नहीं भी होगा, तो खुद पर हंस लो कल फिर से ट्राय कर लेना
Live Timer Widgets and Tools
टाइम की कदर कौन नहीं करता? लेकिन हाथ में घड़ी पहनने से काम थोड़े ही खुद-ब-खुद पूरा हो जाता है! असली खेल तो सही टाइमर चुनने का है जो न सिर्फ आपको ट्रैक में रखे, बल्कि आपके काम को भी फुल-ऑन तगड़ा बना दे। चलिए, आपको एक-एक करके समझाता हूँ कि कौन सा टूल कब और कैसे आपके काम आ सकता है।
1. पोमोडोरो टाइमर: फोकस का फेवरेट हथियार
- क्यों चुनें?
भाई, फोकस करना है तो पोमोडोरो टाइमर से बेहतर कुछ नहीं। 25 मिनट काम, 5 मिनट ब्रेक – ऐसा फॉर्मूला कि आलसी भी काम में लग जाए! - कौन सा टूल?
- पोमोफोकस – सीधा ब्राउज़र में, बिना झंझट।
- Tomato-timer.com – नाम से ही मजेदार, काम भी उतना ही आसान।
- खास फीचर:
- टास्क का टाइम ऐस्टिमेट लगाने का ऑप्शन मतलब, खुद से झूठ नहीं बोल सकते कि “ये काम तो बस 10 मिनट का है!”
- कस्टम ब्रेक और वर्क इंटरवल्स अपने हिसाब से सेट करो, कोई रोक-टोक नहीं।
2. इंटरवल/टाइमबॉक्सिंग टाइमर: काम और ब्रेक का सही बैलेंस
- क्यों चाहिए?
अगर एक ही चीज़ में घंटो डूबे रहना तुम्हारे बस की बात नहीं, तो ये इंटरवल टाइमर ज़रूर आज़माओ। - कौन सा टूल?
- ऑनलाइन स्टॉपवॉच इंटरवल टाइमर खुद का रूल सेट करो, चाहे 15-15 मिनट के स्प्रिंट लगाओ या 1 घंटे की मैराथन।
- खासियत:
- फुल-स्क्रीन मोड यानी काम करते-करते टाइमर मिस नहीं कर सकते।
- हर टास्क के लिए कस्टम टाइम ब्लॉक टोटल कंट्रोल तुम्हारे हाथ में।
3. सिंपल टाइमर: जब बस उल्टी गिनती चाहिए
- कब काम आता है?
कभी-कभी ज़िंदगी इतनी सिंपल चाहिए कि बस टाइमर लगाओ और काम शुरू कर दो फालतू का झंझट नहीं चाहिए। - कौन सा टूल?
- गूगल टाइमर “टाइमर” गूगल में टाइप करो, और सामने बेसिक उल्टी गिनती आ जाएगी।
- मज़ेदार बात:
- ऑफिस में बॉस को दिखाने के लिए या खुद को डेडलाइन देने के लिए बेस्ट फैंसी फीचर की ज़रूरत ही नहीं!
4. टास्क मैनेजर: एक ही जगह सब कंट्रोल
- क्यों ज़रूरी?
अगर आप उन लोगों में से हो, जो हर चीज़ को लिस्ट में लिखते हैं (यानी, थोड़े OCD वाले), तो ये टास्क मैनेजर ऐप्स आपके लिए हैं। - कौन से ऑप्शन?
- टॉगल – टाइम ट्रैकिंग का किंग, फ्री में भी बहुत कुछ मिल जाता है।
- टोडोइस्ट – टास्क, डेडलाइन, सब कुछ एक जगह।
- क्लिकअप – इसमें तो फ्लोटाइम गाइड जैसी चीज़ें भी मिलती हैं, जिससे आपको खुद पर शक़ होने लगेगा कि आप इंसान हैं या मशीन।
- खास फीचर:
- इनबिल्ट टाइमर – काम शुरू करो, टाइमर ऑन। काम खत्म, टाइमर ऑफ।
- रिपोर्ट भी मिलती है – किस टास्क पर कितना वक्त बर्बाद किया, सब पता चल जाएगा।
देखो, बात साफ है चाहे आप पोमोडोरो का फैन हो या सिंपल स्टॉपवॉच यूज़र, अगर टाइमर को देखोगे ही नहीं, तो सब बेकार है। टेक्नोलॉजी सिर्फ तब तक काम करती है, जब तक आप उसका सही इस्तेमाल करो। टाइमर चालू है, और आप मोबाइल में रील्स देख रहे हो? भाई,
Conclusion
यार, फोकस करने के लिए ये जो पोमोडोरो, टाइमबॉक्सिंग और फ़्लोटाइम जैसे हथियार हैं न ये तो जैसे सुपरहीरो के अलग-अलग गेटअप हैं! पोमोडोरो बोले तो टिक-टिक करते टाइमर के साथ 25 मिनट काम, फिर छोटी सी छुट्टी, फिर वापिस मैदान में। टाइमबॉक्सिंग में हर टास्क को अपना खुद का टाइम का जादुई बक्सा मिलता है कोई चोरी-छुपे वक्त उड़ाने वाला नहीं। और अब आता है फ़्लोटाइम, मतलब जब दिमाग रॉकेट पर हो, बस उड़ते जाओ किसी ने टोका तो समझो क्रिएटिविटी की दुश्मनी कर रहा है!
अब कौन सा वाला अपनाओ? सीधी बात जिसको अपनाने में मज़ा आए, वही असली हीरो है! खुद पर एक्सपेरिमेंट करो, एक तरीका पकड़ो, दो-तीन दिन आज़माओ, फिर अगला ट्राय करो। हो सकता है तुम्हारे लिए पोमोडोरो से बोरिंग टास्क पटाखा की तरह निपट जाएँ, और फ़्लोटाइम में क्रिएटिविटी की बारिश हो जाए। मिक्स एंड मैच भी कर सकते हो अरे भाई, कोई रोक थोड़े रहा है!
आखिर, खेल बस एक चीज का है एक वक्त में एक काम पर दिल-ओ-जान से लग जाओ, बाकी दुनिया बाद में देख लेंगे। ऊपर जो भी पढ़ा-लिखा, वो सब तुम्हारे टूलबॉक्स में गया। अब उठाओ अपना पसंदीदा सुपरपावर और लग जाओ फोकस की दुनिया में! मज़ा आना चाहिए, वरना सब बेकार!
FAQs
पोमोडोरो तकनीक क्या है और यह कैसे काम करती है?
सीधा-सीधा पोमोडोरो एक टाइम मैनेजमेंट तरीका है जिसमें आप 25 मिनट तक बिना फोकस तोड़े काम करते हो, फिर 5 मिनट का छोटा-सा ब्रेक लेते हो. ये चक्कर चार बार दोहराओ, उसके बाद एक लंबा ब्रेक ले लो कुछ 15 मिनट का, तो कभी 30 मिनट का, मूड के हिसाब से.
इसकी असली ताकत है कि इससे माइंड अलर्ट रहता है, काम में डूबे रहना आसान हो जाता है और जो “अभी कर लेंगे” वाली आलसी आदत है, उस पर थोड़ी लगाम लग जाती है. कुछ लोग तो पोमोडोरो को ऐसा मानते हैं जैसे पढ़ाई या काम की जिम छोटा सेट, छोटा ब्रेक, फिर दोबारा अटैक!
टाइमबॉक्सिंग और पोमोडोरो में क्या अंतर है?
देखो, दोनों टाइम मैनेजमेंट के तगड़े फाइटर हैं, लेकिन स्टाइल अलग है.
पोमोडोरो: इसमें हर काम को 25-25 मिनट के सेट में तोड़ते हैं, बीच में 5 मिनट के ब्रेक के साथ. मतलब, पूरा दिन एक टाइमर की तरह चलता है टिक टिक टिक!
टाइमबॉक्सिंग: इसमें हर टास्क के लिए अलग टाइम स्लॉट सेट करते हैं. जैसे, “ईमेल्स के लिए 30 मिनट, रिपोर्ट के लिए 45 मिनट.” इसमें लचीलापन थोड़ा कम है, लेकिन टास्क प्लानिंग और प्रायोरिटी में कोई जवाब नहीं. टाइमबॉक्सिंग में आपको एक स्ट्रक्चर मिल जाता है, जिससे दिन का कंट्रोल अपने हाथ में रहता है.
फ्लोटाइम तकनीक किसके लिए सबसे अच्छी है?
अगर आप क्रिएटिव इंसान हो राइटर, प्रोग्रामर, डिजाइनर और आपको टाइमर से चिढ़ है, तो फ्लोटाइम आपके लिए है. इसमें कोई टाइम लिमिट नहीं, बस जब तक काम में मन लगा है, तब तक करते रहो.
आप खुद ही डिसाइड करते हो कि कब रुकना है, कब ब्रेक लेना है. दिमाग थक जाए, तो ब्रेक ले लो. और हाँ, अगर आप फ्री फ्लो में काम करना पसंद करते हो बिना कोई अलार्म या टाइमर के तो फ्लोटाइम ज़बरदस्त है.
पोमोडोरो तकनीक के क्या नुकसान हैं?
चलो, सच बोलते हैं पोमोडोरो हर किसी के लिए नहीं बनी.
25 मिनट का सेट कुछ लोगों को बहुत कम लगता है, तो कुछ को बहुत लंबा.
बीच में कोई डिस्टर्बेंस (जैसे अचानक बॉस की कॉल या फैमिली का डिमांड) आ गया तो सारा चक्र टूट जाता है.
और अगर आप क्रिएटिव वर्क करते हो, तो हर बार टाइमर देख-देखकर काम करना थोड़ा बोरिंग लग सकता है. मतलब, हर किसी का अपना फ्लो होता है, और पोमोडोरो उसमें सेंध लगा सकता है.
टाइमबॉक्सिंग कैसे शुरू करें?
सबसे पहले, अपने दिन के सारे टास्क लिख डालो चाहे छोटे हों या बड़े.
अब हर टास्क के लिए एक रियलिस्टिक टाइम स्लॉट अलॉट करो. जैसे, “रिपोर्ट लिखना 45 मिनट, ईमेल्स 30 मिनट.”
फिर टाइमर सेट करो, और कोशिश करो कि उसी टाइम में टास्क निपटा सको. टाइम ओवर हो गया तो या तो ब्रेक ले लो, या अगले टास्क पर शिफ्ट हो जाओ. ऐसा करने से दिन का स्ट्रक्चर सेट हो जाता है और बहुत सा टाइम बर्बाद होने से बच जाता है.
फ्लोटाइम तकनीक में ब्रेक कैसे मैनेज करें?
अपने शरीर और दिमाग की सुनो जब लगे कि थक गए या बोर हो गए हो, तभी ब्रेक ले लो. डोंट फोर्स योरसेल्फ!
ब्रेक के वक्त स्क्रीन से दूर रहो स्ट्रेचिंग करो, चाय-सुड़क लो, थोड़ी सांस ताजा कर लो.
ब्रेक का टाइम कहीं लिख लो या नोट कर लो, वरना कब काम के बहाव में ओवरवर्क कर जाओगे, पता ही नहीं चलेगा. मतलब, फ्लोटाइम में फ्रीडम है, लेकिन खुद को ध्यान में रखना जरूरी है.
कौन सा टाइम मैनेजमेंट टूल सबसे अच्छा है?
पोमोडोरो: Tomato-timer.com या Focus To-Do ऐप दोनों में टाइमर, ब्रेक्स और ट्रैकिंग सब कुछ मिलता है.
टाइमबॉक्सिंग: Google Calendar या Toggl Track गूगल के भरोसे तो सब चलता है!
फ्लोटाइम: सिंपल स्टॉपवॉच या Clockify बस टाइम ट्रैकिंग करनी है, जटिलता से दूर रहना है.
क्या इन तकनीकों को मिक्स किया जा सकता है?
बिल्कुल! वैसे भी, जिंदगी में जुगाड़ चलता है.
पोमोडोरो + टाइमबॉक्सिंग: बड़े टास्क को टाइमबॉक्स में बांट दो, फिर हर बॉक्स को पोमोडोरो से कवर करो यानी, स्ट्रक्चर भी और फोकस भी!
फ्लोटाइम + पोमोडोरो: जब क्रिएटिव काम हो तो फ्लोटाइम, और जब रिपीटेटिव या बोरिंग काम हो तो पोमोडोरो दोनों का मिक्स मसाला! इससे आपका काम भी बोरिंग नहीं होता और टाइम का ट्रैक भी रहता है.
अगर टाइमबॉक्सिंग में टास्क पूरा नहीं होता तो क्या करें?
सबसे पहले, अगले टाइमबॉक्स में उसी टास्क को प्रायोरिटी दो. टाइम का अंदाजा गलत हो गया? कोई बात नहीं स्टार्ट में सबसे यही गलती होती है. धीरे-धीरे सीख जाओगे कि किस टास्क को कितना टाइम चाहिए. बस टाइम एस्टीमेशन को थोड़ा-थोड़ा एडजस्ट करते रहो.
कौन सी तकनीक स्टूडेंट्स के लिए सबसे अच्छी है?
पोमोडोरो: छोटे-छोटे स्टडी सेशन (25 मिनट) इससे पढ़ाई बोझ नहीं लगती और ब्रेक में रिफ्रेश हो जाते हो.
टाइमबॉक्सिंग: अगर एग्जाम की तैयारी करनी है या कोई बड़ा प्रोजेक्ट है, तो टाइमबॉक्सिंग जबरदस्त है पूरा सिलेबस प्लान के साथ तैयार हो जाता है.
फ्लोटाइम: रिसर्च या क्रिएटिव राइटिंग जैसी चीज़ों के लिए बेस्ट जहां टाइम का बंधन नहीं चाहिए.