What Are the 5 Most Important Laws?
Laws shape every part of our lives. They protect us, keep order, and define right from wrong. In this post, we’ll cover the five most important laws everyone should know. These laws help us understand how society works and what is expected of us daily.
1. Introduction
कानून, क्या ही कहें ये तो जैसे समाज की बुनियाद हैं, ठीक वैसे जैसे इमारत की नींव होती है। इंसान, संस्थाएँ, सबका मेल-जोल, रोज़ की भागदौड़ इनके बिना सब तितर-बितर हो जाता। सोचकर देखो, अगर एक दिन के लिए भी सारे कानून गायब हो जाएँ? फिर तो बस हर तरफ अफरा-तफरी, कन्फ्यूजन और झगड़े की भरमार!
कानून सिर्फ़ लोगों के बर्ताव को नहीं सँभालते, ये तो प्रकृति की सुरक्षा से लेकर पैसों के खेल तक, हर जगह चौकीदार बने खड़े हैं। किसी भी सिस्टम को दुरुस्त रखने के लिए इनकी मौजूदगी ज़रूरी है वरना तो सब गड़बड़झाला ही गड़बड़झाला!
तो चलो, इस आर्टिकल में उन पाँच सबसे दमदार कानूनों को टटोलेंगे जो हमारी ज़िंदगी को दिशा देते हैं चाहे वो नेचर के कायदे हों, आदमी-आदमी के रिश्तों के नियम हों, या फिर पैसे-पैसे की उठा-पटक। इन पाँच के बिना, यार, दुनिया का क्या भरोसा?
2. Importance of Laws in Society
कानून… इनके बिना तो ज़िंदगी किसी जंगल से कम नहीं होगी, यार। सोचो, कोई नियम ही नहीं किसी को नहीं पता कि कहाँ लाइन खींची है, किस बात की इजाज़त है, किसकी नहीं। विवाद? हर दिन नया तमाशा! कमज़ोरों की तो शामत ही आ जाएगी कोई पूछने वाला नहीं।
अब ट्रैफिक का ही मामला ले लो। अगर ट्रैफिक कानून न होते, तो सड़कें किसी रेसिंग ट्रैक से कम नहीं लगतीं। हर किसी की अपनी मर्ज़ी, एक्सीडेंट्स की लाइन लग जाती। कोई पकड़ने वाला नहीं, बस जितना मन उतनी तेज़ी! वैसे ही, व्यापार में कानून न हो तो बड़े लोग छोटे बिज़नेस वालों को रौंद डालेंगे ग्राहकों की तो कोई सुनवाई ही नहीं। कानून ही है जो खेल को थोड़ा फेयर रखता है, वरना हर कोई अपना फायदा देखेगा।
इंसानी हक़ की बात करें, तो कानून के बिना तो जो ताकतवर है वही मालिक, बाकी सब बस मूक दर्शक। भेदभाव, शोषण, हिंसा सब आम बात हो जाएगी। कानून ही है जो सबको बराबरी और इंसाफ़ का भरोसा देता है।
साफ बात कानून के बिना सब गड़बड़झाला है। समाज को संभालना है, तो कानून तो चाहिए ही चाहिए वरना सबकुछ राम-भरोसे!
3. The Role of Laws in Maintaining Order and Justice
ठीक है, अब ज़रा सोच के देखो कोई भी न्याय व्यवस्था असल में तभी काम की होती है, जब वो हर जगह अपनी पकड़ बनाए रखे और इंसाफ को सचमुच ज़िंदा रखे। कानून तो ऐसे हैं जैसे समाज के ताने-बाने को सुई-धागे से जोड़ने वाले कारीगर, नहीं तो हर कोई अपनी ही धुन में, जैसे जंगली मैदान में भागता घोड़ा! कानून सिर्फ़ सज़ा देने के लिए नहीं बने, असली जादू तो इसमें है कि ये गड़बड़ियां होने ही नहीं देते मतलब, प्रॉब्लम आने से पहले ही ब्रेक लगा देते हैं।
अब आओ ज़रा इंसानी हकों की बात करें। न्याय प्रणाली, यार, यही असली हीरो है! भेदभाव और बदसलूकी पर ब्रेक लगाने वाले कानून, समाज के सबसे हाशिए पर खड़े लोगों के लिए ढाल बन जाते हैं। सोचो, सबको बराबरी का मौका और हिफाज़त मिलती है ये सब कानून की बदौलत है! और अगर कोई हक मार ले, तो आदमी कोर्ट-कचहरी में जा सकता है, अपनी आवाज़ उठा सकता है, और जिसने गड़बड़ की है, उसे कटघरे में खड़ा किया जाता है। एकदम फिल्मी सीन!
अंत में, कानून इंसानों और संगठनों को जिम्मेदार बनाता है। यानी, सबको सिखाता है कि दायरे में रहना ज़रूरी है, चाहे वो सड़क पर हो, दफ्तर में या सरकार में। नियम बताते हैं कि दूसरों के साथ कैसा बर्ताव करना है, कारोबार कैसे चलाना है, और सरकार को नागरिकों के लिए क्या-क्या करना चाहिए। अब सोचो, कानून न हो तो क्या होगा? जिसके पास ताकत है, वही सब पर हावी हो जाएगा। बाकी? बस मूर्ख बन के रह जाएंगे। इंसाफ तो फिर कहानियों में ही मिलेगा।
तो जनाब, कानून के बिना समाज वैसे ही है जैसे बिना धागे की पतंग ऊपर उड़ती तो है, मगर कब गिर पड़े, कोई भरोसा नहीं!
4. The Rule of Law
चलो, थोड़ा क्रिएटिव अंदाज में समझें कानून का शासन, यानी Rule of Law, ये कोई बोरिंग किताब की थ्योरी नहीं है, भाई! ये तो वैसे है जैसे किसी फिल्म में सुपरहीरो सबको बराबर बचाता है, चाहे वो अमीर हो या गरीब, छोटा हो या बड़ा। मतलब, हर कोई कानून के दायरे में है कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं, कोई ‘VIP पास’ नहीं।
इसकी अहमियत को इग्नोर करना मतलब, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना। Rule of Law लोकतंत्र की असली रीढ़ है। ये सरकार को मनमानी से रोकता है, ताकतवर लोगों की अकड़ पर लगाम लगाता है, और आम लोगों को ये भरोसा देता है कि उनके साथ कोई धोखा नहीं होगा। यहाँ पर नियम किताब के पन्नों में ही नहीं, सड़क पर भी सबको बराबर ट्रीट करते हैं नेता हो या नाटा, अफ़सर हो या आम आदमी सब लाइन में खड़े!
और हाँ, Rule of Law ही लोकतंत्र को रॉकस्टार बनाता है। कानून ऐसे ही नहीं बनते, इसके लिए पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया होती है बहस, वोटिंग, सब कुछ। कोई एक आदमी उठकर नहीं कह सकता ‘आज से ये नया कानून!’ मतलब, हर कानून जनता की मर्ज़ी से बनता है, तानाशाही का चांस ही नहीं। इससे करप्शन पर ब्रेक लगता है और सरकार की पारदर्शिता रहती है चमकदार।
तो, कुल मिलाकर, Rule of Law सिर्फ एक टॉपिक नहीं, बल्कि वो फाउंडेशन है जिस पर समाज की बिल्डिंग टिकी है। अगर ये न हो, तो सब कुछ धड़ाम!
5. The Law of Gravity
और ये नियम इतना पॉपुलर क्यों है? क्योंकि ये सिर्फ हमारी धरती या मोहल्ले तक सीमित नहीं, पूरी यूनिवर्स में चलता है। कहीं भी चले जाओ, Gravity से बच नहीं सकते। यही यूनिवर्सलिटी है जो इसे इतना खास बनाती है हर जगह, हर वक्त, बिना थके, बिना छुट्टी के ड्यूटी पर।
इसकी असली खासियत? सिंपल है, फिर भी हर छोटी-बड़ी घटना को समझा देता है। सेब गिरा, ग्रह घूमे, या बच्चे खेलें Gravity ही मास्टरमाइंड है। इसी वजह से साइंस वाले गुरु इसे सिर-आँखों पर बिठाए रहते हैं। सच कहें तो, ये नियम तो ब्रह्मांड का असली सुपरस्टार है हर जगह, हर वक्त, सबकी ज़िंदगी में एक्टिव!
6. The Law of Supply and Demand
अर्थशास्त्र में सप्लाई और डिमांड का नियम वाह, क्या जादू है! सीधा-सादा, फिर भी हर बाज़ार की धड़कन इसी में छुपी है। सोचो, कोई चीज़ हर तरफ भरी पड़ी है, लेकिन लोग खरीदने वाले कम हैं फिर तो दाम अपने-आप नीचे लुढ़क जाएंगे। लेकिन जैसे ही लोग टूट पड़ें और माल कम हो जाए, समझो फिर तो कीमतें सरपट भागेंगी। यही रोलर-कोस्टर राइड हर सामान, हर बाज़ार में चलती रहती है।
कस्टमर की भी अपनी चाल है। जैसे ही सेल लगी या डिस्काउंट आया, और माल ज्यादा हो गया, लोग ऐसे टूट पड़ते हैं मानो खजाना मिल गया हो। कंपनियाँ भी कम नहीं अगर नया प्रोडक्ट है और सब खरीदना चाहते हैं, तो पहले दिन तो दाम आसमान में, फिर जैसे-जैसे भीड़ कम, कीमतें भी नीचे। पूरा खेल ही डिमांड-सप्लाई का है, कोई जादू-टोना नहीं।
तो कुल मिलाकर, सप्लाई और डिमांड का ये नियम सीधा लग सकता है, लेकिन इसके पीछे असली बाजार की मस्ती छुपी है। यही है वो जादू, जो व्यापार की धारा को लगातार बहाता रहता है।
7. The Law of Contracts
अनुबंध कानून यार, ये तो हर मोड़ पर आपके साथ चलता है, बस आप नोटिस नहीं करते। जरा सोचिए, दो-तीन लोग आपस में कुछ तय कर रहें हैं कोई बिजनेस डील, या किराए का मकान, या बस एक कार खरीदना। इन सब के पीछे जो अदृश्य सुपरहीरो है, वही अनुबंध कानून है। ये कानून तो ऐसे है जैसे आपकी डील का बॉडीगार्ड कोई इधर-उधर हुआ तो तुरंत एक्शन!
अब, असली खेल क्या है? पहली बात दोनों पार्टी की रज़ामंदी होनी चाहिए। जबरदस्ती, डर-धमकी, या ‘चलो यार, कर लो’ वाला मामला नहीं चलेगा। दूसरा, कोई चीज़ एक्सचेंज होनी चाहिए पैसे, सामान, या कोई सर्विस। तीसरा, दोनों की हालत देखी जाती है मतलब, दिमागी तौर पर फिट हों, बच्चे या पागल नहीं। और सबसे ज़रूरी जो तय हो रहा है, वो कानून के खिलाफ ना हो। गड़बड़ होगा तो मामला सीधा कट जाएगा।
बिजनेस की दुनिया में तो ये कानून सुपरस्टार है एम्प्लॉयर और एम्प्लॉयी दोनों की डील क्लियर, ताकि बाद में कोई बोले ‘मुझे तो छुट्टी चाहिए थी’, तो सब पेपर पर लिखा हो। इंटरनेशनल लेवल पर भी कंपनियां डील्स करती हैं, पेमेंट्स, डिलीवरी, क्वालिटी हर चीज़ अनुबंध में फिक्स। वरना तो कल को कोई माल लेकर उड़ जाए, फिर ढूंढते रहो।
सीधा बोलें तो, अनुबंध कानून के बिना हमारा हर सौदा अधूरा है। ये कानून न हो तो सब सर पर पैर रखकर भागेंगे, कोई किसी की मानेगा ही नहीं। तो अगली बार जब कोई डील करो, मन में कहो धन्यवाद, अनुबंध कानून!
8. The Law of Conservation of Energy
ऊर्जा संरक्षण का नियम अबे, ये तो भौतिकी का असली बिलकुल बेसिक फंडा है! सीधे-सपाट कहें तो, एनर्जी को पैदा नहीं किया जा सकता, न ही मिटाया जा सकता है बस एक रूप से दूसरे में ट्रांसफर, जैसे मैजिक ट्रिक हो किसी पार्टी में। ये नियम तो शास्त्रीय यांत्रिकी की रीढ़ है, और सच मानो, सिस्टम कैसे बिहेव करते हैं, ये समझने में इसकी बड़ी भूमिका है। मतलब, अगर कोई सिस्टम बंद है, तो उसमें टोटल एनर्जी हमेशा उतनी ही रहेगी, भले वो जंपिंग-जैक्सन की तरह रूप बदलती रहे पोटेंशियल से काइनेटिक, या इलेक्ट्रिक से हीट, कुछ भी हो सकता है।
और, ये नियम कोई किताबों की बात नहीं है हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी यही है। मशीनें हों या इंसान हर कोई इसी एनर्जी के खेल में उलझा है। सोचो, अगर ये नियम न होता, तो साइंस का आधा झमेला अधूरा ही रह जाता!
तो अगली बार जब टीवी ऑन करो या माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न डालो याद रखना, एनर्जी बस ड्रेस बदल रही है, गायब कहीं नहीं हो रही। सच में, ये नियम है तो दुनिया है!
9. The Law of Human Rights
अब ये कानून खाली किताबों में सजे-संवरे नहीं रहते। असली रोल तो तब शुरू होता है जब कोई ताकतवर, सरकार या कोई भी, आम लोगों के हक पर डाका डालने लगे। ऐसे में ये कानून सुपरहीरो की तरह सामने आते हैं कोर्ट कचहरी में इंसान आवाज़ उठा सकता है, “भैया, मेरे राइट्स की ऐसी-की-तैसी मत करो!” ICCPR जैसी बड़ी-बड़ी ट्रीटीज़ भी इसे फुल सपोर्ट देती हैं मतलब, दुनिया के किसी भी कोने में, इंसाफ और बराबरी का झंडा बुलंद रहना चाहिए।
वैसे इन कानूनों की हद सिर्फ पॉलिटिक्स तक नहीं है। गरीबी, भेदभाव, जेंडर की झिक-झिक, ये सब भी इनके निशाने पर हैं। कोई लड़की स्कूल से बाहर, गरीब को इलाज से बाहर, या कोई इंसान जबरन मजदूरी में धकेला जाए तो ये कानून बोलते हैं, “रूक जा भाई, ये सही नहीं है।” टॉर्चर, तस्करी, या किसी भी तरह की अमानवीय हरकत सब पर बैन।
और सबसे खास बात ये राइट्स कभी छुट्टी पर नहीं जाते। कोई भी इमरजेंसी हो, सरकार सिर के बल खड़ी हो जाए, फिर भी ये राइट्स छिन नहीं सकते। मतलब, इंसानियत का जो असली रंग है, वो बरकरार रहना चाहिए। ये कानून बस उसी की गारंटी हैं सबको बराबरी, सबको इज़्ज़त, और किसी के भी साथ नाइंसाफी नहीं!
10. The Concept of Justice
कानून और न्याय ये दोनों तो जैसे जलेबी और दूध, एक के बिना दूसरा अधूरा। सोचो, अगर कानून न हो, तो न्याय बस एक सपना रह जाएगा। असली जिंदगी में, कानून ही वो जादुई छड़ी है जो समाज में सबको बराबरी का एहसास दिलाता है।
जरा सीधी बात करूं न्याय का असली मतलब है, हर इंसान के साथ सही और बराबर बर्ताव। चाहे कोई राजा हो या राहगीर, कानून के सामने सब बराबर। कानून ही वो रंगीन धागा है, जो समाज की चादर को एकसार बनाता है। क्या करना चाहिए, क्या नहीं, इसकी लकीर कानून खींचता है, और अगर कोई उस लकीर को पार करता है, तो कानून ही बताता है “भाई, अब भुगतो!”
मज़ेदार बात ये है कि कानून, समाज में ताकतवर और कमजोर के बीच एक मजबूत दीवार बनकर खड़ा हो जाता है। वो कहावत है न, “कानून के हाथ लंबे होते हैं” तो बस, चाहे मंत्री हो या मजदूर, सबकी गर्दन उतनी ही लंबी है उसके सामने! अदालतों में, कानून ही वो जादुई किताब है जिससे हर झगड़े का हल निकाला जाता है।
और कानून सिर्फ डरा कर नहीं, बल्कि बचा कर भी चलता है। कोई किसी के हक में सेंध लगाता है, किसी के साथ बुरा बर्ताव करता है, या किसी को सताता है कानून उसे ढाल बनकर बचाता है। और अगर कानून सब पर बराबर लागू हो, तो फिर तो समाज में एक अलग ही ताजगी महसूस होती है। लोग सोचते हैं “अरे, यहाँ तो सच में इंसाफ मिलेगा!”
आखिर में, कहने का मतलब कानून और न्याय की ये जोड़ी अगर सही से चले, तो समाज एक खूबसूरत रंगोली की तरह सजा रहता है। वरना, सब कुछ गड्ड-मड्ड!
11. Why Laws are Needed
अराजकता को लगाम लगाना
जरा सोचो, अगर कानून नाम की कोई चीज़ ही न होती! दुनिया सीधा-सीधा जंगल बन जाती हर कोई अपनी मर्जी का बादशाह, किसी को किसी की फिक्र नहीं। सड़क पर लड़ाइयाँ, मोहल्ले में झगड़े, ऑफिस में सिरफुटौव्वल सब आम बात हो जाती। भरोसे की तो छुट्टी समझो, हर जगह बस अव्यवस्था का बोलबाला।
ये कानून ही हैं जो साफ-साफ बताते हैं भैया, ये लाइन क्रॉस मत करो। कौन-सा हक है, किसकी क्या जिम्मेदारी, सब तय रहता है। कानून लागू होते हैं तो लोग थोड़ा सुकून से जीते हैं वरना हर वक्त यही लगेगा, कब कौन सिर पर आ बैठे! ट्रैफिक सिग्नल से लेकर प्रॉपर्टी तक कानून के बिना सब उल्टा-पुल्टा हो जाता।
हक और आज़ादी की सुरक्षा
अब ये मत समझना कि कानून सिर्फ रोक-टोक के लिए बने हैं। असली कमाल तो ये है कि ये हमारे हक की हिफाजत भी करते हैं। बोलने की आज़ादी हो, इंसाफ की उम्मीद, या फिर भेदभाव से बचाव इन सबका भरोसा कानून दिलाता है। वरना, कमज़ोर की तो हमेशा सुनवाई ही नहीं होती।
मानवाधिकार वाले कानून तो खास बनाये गए हैं ताकी सरकार या बड़े-बड़े संस्थानों की मनमानी न चले। सोचो, अगर कहीं दफ्तर में नाइंसाफी हो जाए, या कोई तुम्हारे हक पर डाका डाल दे, तो कहाँ जाओगे? कानून ही है जो इंसान को इज़्ज़त और बराबरी के साथ जीने का मौका देता है।
खुलकर कहूँ तो, कानून न हो तो दुनिया जंगल हो जाए जहाँ बस ताकतवर की चलती है, बाकी सब धूल फाँकते हैं।
Conclusion
कानून के बिना समाज? जैसे बिना रिमोट के टीवी हर कोई अपनी मर्जी से चैनल बदलता रहता। चाहे बात हो गुरुत्वाकर्षण की, जो हमें जमीन से चिपकाए रखता, या फिर मानवाधिकार की, जो इंसानों को इंसान बनाता ये सारे नियम हमारे जीने और एक-दूसरे के साथ डील करने का पूरा तरीका ही सेट करते हैं।
अब देखो, कानून का शासन, गुरुत्वाकर्षण, डिमांड-सप्लाई, कॉन्ट्रैक्ट और मानवाधिकार ये पांचों नियम मिलकर पूरे सिस्टम को बैलेंस में रखते हैं। नहीं तो सोचो, बाज़ार में दाम का कोई हिसाब नहीं, रिश्तों में भरोसा ग़ायब, और इंसाफ? सपने में भी नहीं।
FAQs
कानून क्यों आवश्यक हैं?
सोचो, अगर कानून न होते तो हर कोई अपनी मर्जी का मालिक होता सुबह उठे, जो मन किया कर लिया! किसी का घर, किसी की गाड़ी, या यहां तक कि सड़क पर चलना भी रिस्की हो जाता। कानून वही है जो सबको एक लाइन में खड़ा करता है बड़े-बड़े दबंगों को भी और आम जनता को भी। ये सिर्फ डराने के लिए नहीं, बल्कि हम सबकी जिंदगी थोड़ी चैन से चल सके, इसके लिए हैं। असली में, कानून वो छाता है, जिसके नीचे सबको बराबर की छांव मिलती है।
कानून का शासन क्या है’?
‘Rule of Law’ सुनने में भारी-भरकम लगे, पर असल में ये एकदम सीधा-सादा फंडा है। कोई राजा, नेता, या अमीर आदमी कानून से ऊपर नहीं। सब एक ही तराजू में तौले जाएंगे। मान लो, अगर ये नहीं होता तो सरकार या कोई ताकतवर इंसान मनमानी करता रहता। ये लोकतंत्र का सुपरग्लू है, सबको एक साथ जोड़े रखता है। बिना इसके, तो फिर “जिसकी लाठी उसकी भैंस” वाली कहानी सच हो जाती।
यातायात नियमों का क्या महत्व है?
ट्रैफिक के नियम ना होते तो सड़कें किसी धक्का-मुक्की के मेले से कम नहीं लगतीं। गाड़ियाँ इधर-उधर भागतीं, लोग पैदल निकलना ही छोड़ देते। ये रूल्स हमारी रोज़मर्रा की लाइफ को आसान बनाते हैं स्कूल टाइम पर पहुंचो, ऑफिस जल्दी पहुँचो, एक्सीडेंट्स न हों। और जब कभी कोई ट्रैफिक पुलिसवाला चालान काटे, तो सोचो कम से कम उसी बहाने तुम्हारी जान बचा रहा है!
मानवाधिकार कानून क्या हैं?
इन कानूनों के बिना तो समझो, आदमी के हक बस किताबों में रह जाते। ये कानून हमें हिम्मत देते हैं कि हम भेदभाव, अत्याचार या शोषण के खिलाफ आवाज उठा सकें। एकदम फिल्मी डायलॉग जैसा “अरे, मेरा हक है!” असल में यही कानून दिलाता है। लड़कियों को पढ़ाई, मजदूरों को बराबर की सैलरी – ये सब हक कागज पर नहीं, हकीकत में इन कानूनों की वजह से मिलते हैं।
अनुबंध कानून क्यों महत्वपूर्ण है?
बिजनेस हो या दोस्ती भरोसा तभी चलता है जब कोई नियम-कायदा हो। सोचो, कोई तुम्हें बोले “भाई, कल पैसे दे दूंगा” और फिर मोबाइल स्विच ऑफ! कॉन्ट्रैक्ट कानून यही रोकता है। चाहे दुकान से सामान लो या फ्लैट बुक करो, हर जगह ये कानून तुम्हें धोखा खाने से बचाता है। और हाँ, सिर्फ लिखित नहीं, मुँहजबानी वादे भी कई बार कानून की पकड़ में आते हैं सावधान!
कानून और न्याय में क्या अंतर है?
थोड़ा दिमाग लगाओ कानून तो बस लिखे हुए नियम हैं, जो हर कोई मानने का दिखावा करता है। पर न्याय? असली खेल यहीं शुरू होता है। जब वही नियम सबके लिए बराबरी से लागू हों, और किसी का हक न मारा जाए वही है न्याय। कानून के बिना न्याय अधूरा, और न्याय के बिना कानून बस एक मोटी किताब!
भारत में संपत्ति कर कानून क्या है?
अब ये टैक्स है तो है बच नहीं सकते! शहर में घर है या दुकान, हर साल नगर निगम का नोटिस आ ही जाता है। ये टैक्स प्रॉपर्टी के साइज, लोकेशन और किस काम में आ रही है, सब देखकर लगता है। ऑनलाइन भर दो या लाइन में लगो सरकार को उसकी कमाई चाहिए ही चाहिए। हाँ, टैक्स भरना जरूरी है, वरना जुर्माना या सीलिंग जैसी मुसीबतें अलग से सर पर खड़ी मिलेंगी।
यदि आप कानून तोड़ते हैं तो क्या होगा?
ये कोई वीडियो गेम नहीं कि दोबारा ट्राई कर लो। पकड़े गए तो सीधे जुर्माना, जेल या फिर दोनों। सिविल मामले में तो मुआवज़ा देना पड़ेगा, और अगर कोई बड़ा गुनाह कर डाला तो उम्रकैद या फांसी जैसी सजा भी मिल सकती है। यानी कानून से खेलोगे, तो खेल बहुत महंगा पड़ सकता है!
कानून कैसे बनाये जाते हैं?
कोई भी अचानक रात को सपना देखकर कानून नहीं बना देता! पहले बिल पेश होता है संसद या विधानसभा में। फिर खूब बहस, हो-हल्ला, तकरार, और आखिर में वोटिंग। पास हो गया तो प्रेसिडेंट या गवर्नर की मोहर लगती है, तब जाकर कानून लागू होता है। यानि पूरा प्रॉसेस है कोई जादू नहीं।
विधि के शासन के तीन सिद्धांत क्या हैं?
सब बराबर: चाहे कोई मंत्री हो, अभिनेता या आम आदमी कानून के नीचे सब।
पारदर्शिता: कानून सबके लिए खुले हों, कोई छुपा-छुपी नहीं। सबको पता होना चाहिए कि क्या सही है, क्या गलत।
निष्पक्ष न्याय: न्यायपालिका यानी कोर्ट-कचहरी पूरी तरह आज़ाद और ईमानदार, किसी के दबाव में नहीं। वरना कानून का मजाक उड़ जाएगा!